पूरे देश की नजर गुरुवार को राष्टपति चुनाव के गहमागहमी की ओर थी। दूसरी ओर दिल्ली सहित एनसीआर में घटी घटनाएं एक बारगी सोचने के लिए विवश करती हैं। चुनाव में अलग-अलग दलों के नेताऒं ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर राग अलापा। अन्नादुमक एमडीएमके (वायको) इंडियन लोक दल के अलावा कई दलों के पाला बदलते हुए वोट डाला। शिवसेना ने पाटिल को वोट दिया। गुजरात में भाजपा के नेता बागी तेवर अपनाते हुए खुलेआम पटिल को वोट डाला। तृणमूल कांगेस और जनतादल (एस) ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। राजस्थान गुजरात गोवा हिमाचल मणिपुर सिक्कम पांडिचेरी में शत फीसदी मतदान हुआ।
गुरुवार को ही राजधानी दिल्ली से सटे गेटर नोएडा के जेपी इंटरनेशनल की स्टूडेंट तन्वी का अपहरण कर लिया गया। वह दसवीं क्लास में पढ़ाई कर रही है। इस इलाके के एच-८७ बीटा दो में रहने वाली तन्वी ने बाद में बरैली से अपने पापा को फोन कर अहपरण की जानकारी दी।
फरीदाबाद के पाश इलाके में शामिल अशोका इंकलेव भाग दो में रहने वाली श्रुति की मौत की पोस्टमाटॆम रिपोटॆ ने इस मामले को नया मोड़ ले लिया है। मौत का कारण फांसी लगाना बताया गया है। मृतका के शरीर पर कोई भी चोट का निशान नहीं है। उसे करीब डेढ़ हफ्ते का गभॆ था और उसकी शादी दो माह बाद होने वाली थी। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से बीए कर रही थी।
एक ऒर जहां एक महिला देश के सवोॆच्य राजनीतिक शिखर छूने के लिए बेताब है वहीं दो लड़कियों के साथ घटित घटना समाज और देश की दशा और दिशा का आईना कई ढ़ंग से दिखाया है। हर कदम पर महिलाऒं को किस तरह मौत का सामना करना पड़ रहा है। क्या जान जाना ही मृत्यु का सत्य है। शरीर का निजीॆव होना ही सही मायने में मौत है। क्या घुट-घुट जीना मौत से बदतर नहीं है। आज के इस माहौल में मौत को किस तरह परिभाषित करेंगे।
जरा गौर करें कि एक ऒर जहां उस महिला के हाथों देश की तथाकथित सत्ता आने वाली है जो पद सिफॆ कहने के लिए सवोॆच्य है और पाटिल को अपने गुरु की आत्मा सुनने और समझने की शाक्ति हासिल है। सवाल यहां यह उठता है कि क्या उसमें गांधी के आखिरी व्यक्ति की अंतरात्मा की आवाज सुनने की ताकत है। कहीं एसा तो नहीं कि वह अपने या अपने खास की आत्मा के दशॆन और उनकी बात सुनने में समथॆ है।
नोएडा की तन्वी का स्कूल जाते वक्त अपहरण किस दिल्ली और एनसीआर की तश्वीर पेश करता है। यह घटना वहां घटी जहां कामनवेल्थ गेम के लिए अरबों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। गरीबों की बस्तियां उजाड़ी जा रही हैं। यही वही दिल्ली है जहां आज भी हजारों की की संख्या में लोग फुटपाथ पर अपनी रातें गुजारते हैं। क्या तन्वी का गेटर नोएडा से बरैली पहुंचने का रास्ता एक मौत की परिभाषा से क्या कम होगा। कार में अपहरणकताॆऒं से घिरी तन्वी की सांसें पूरे रास्ते किस तरह चल रही होगी इसका सहज अंदाजा लगाना मुश्किल है।
हरियाणा की औद्योगिक राजधानी के नाम से मशहूर फरीदाबाद में श्रुति की मौत वतॆमान सामाजिक वातावरण का नमूना भर है। हाल के दिनों में अपने आसपास किस तरह ये घटनाएं घट रही हैं इसके ताने-बाने की नींव कहीं न कहीं बचपन से पड़ती है। कुछ न सूझने पर मौत को गले लगाना कहां की बुद्धिमानी है। इस तरह की मौतों को क्या कहा जाएगा।
बंधुऒं आज नहीं तो कल इतिहास हर व्यक्ति से इस सवाल का जवाब मांगेगा कि गुरुवार को हुई तीनों घटनाऒं से एक खास किस्म की मौत से समाज और सभ्यता का दशॆन हो रहा है। कौन सी एसी शक्तियां हैं जो हमारे समाज को मौत की ऒर धकेल रही है। आज नहीं तो कल यह सवाल उठेगा कि यह कैसी मौतें हैं और कौन सी मौतें हैं।
2 comments:
मजा आ गया. पढ़कर भी लेआऊट देखकर भी. अब जरा ऐसा करिए सेटिंग्स में जाकर फांण्ट एंड कलर में टेक्स्ट फान्ट को थोड़ा लार्जर कर दिजीए. बस काम पूरा.
फिर लौटते हैं.
vineet bahi,
ek aalag report ke liye sukriya
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