आज फिर दिनेश रघुवंशी के ग़ज़ल में मस्त होते हैं, कुछ यूं...
हौसला जो परों में रखते हैं
आसमान ठोकरों में रखते हैं
जान लेते हैं जो हदें अपनी
पांव वे चादरों में रखते हैं
अपने मन में बसा लिया उसको
सब जिसे मंदिरों में रखते हैं
लोग कैसी पसंद वाले हैं
खुशबुओं को घरों में रखते हैं
वे ही अब रहजनों में शामिल हैं
हम जिन्हें रहबरों में रखते हैं।
1 comment:
vah, kya bat hai. badhi aise rachanakar ke behtrin gazal blog par post karne ke liye.
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