तसलीमा तो मात्र बहाना है
बंगलादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा को जिस तरह कोलकता से जयपुर और जयपुर से दिल्ली ले जाने का नाटक रचा जा रह है, वह वास्तव में भारत जैसे देश के लिए शर्मनाक है। पूरे देश को इस मामले मन बरगलाया जा रह है और नंदीग्राम की ओर से ध्यान विमुख किया जा रहा है।
अभी तक तसलीमा से मेरी दो बार मुलाक़ात हुई है। पहली बार जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाई करते वक्त हुई थी। दिल्ली के प्रगती मैदान में पुस्तक मेला लगा था। संजोग वश वाणी प्रकाशन में कुछ मित्रों के साथ वही था। क्लास के द्वारा पेपर निकालने की योजना पर भी काम चल रह था। मेरे दिमाग में पता नही किया सूझी मैं उनसे बात करने और अपनी पेपर के लिए बात कर लिया। इस क्रम में मेरी सहायता मेरे गुरु रहे फिल्म मेकर ने की। हमने तसलीमा की पंकित्यों को छापा।
दूसरी बार रायपुर में दैनिक भास्कर के लिए बात की थी। रायपुर के पिकेद्ली होटल की वह शाम आज भी याद है। बातचीत का पूरा rikard टेप में है। अपनी पुस्तकालय से कभी निकाल ब्लोग पर आपकी सामने दूंगा, लेकिन कुल मिल कर यही कहूँगा की तसलीमा के साये में जो राजनीती की जा रही है वो गलत है।