कॉफी अरसे से मंजीत बावा कोमा में है। पिछले दिनों अमर उजाला में भी उनके बारे में काफी विस्तृत रूप में पढा। दिन तो याद नही है, लेकिन लेख काफी कुछ कह गया.
मुझे आज भी याद है जब दैनिक जागरण के लिए उनसे इंटरव्यू लिया था और उन्होने कहा था कुछ नया करो। नयी दिशा में काम करो। लेकिन कई महीनों से उनका कोमा मी रहना क्या कहलाता है। क्या मैं सोचूँ बावा नया कर रहें हैं, कुछ नया सोच रहे हैं। बस अब उठ कर बैठेंगे और नयी कलाकृति पेश कर एक नयी कृति को जन्म देंगे।
फिर भी जब तक साँस तब तक आस। क्यों न उनकी बातों को फिर से याद कर लें। क्लिक करें ..कुछ नया
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