आपने गुरु अशोक चक्रधर जी के ब्लोग पर एक कविता गोविंदा प्रकरण पर देख मेरे अन्दर का कवि भी जाग पर। मैंने भी उनकी तुकबंदी पर कुछ पंक्तियाँ लिख दी।... विनीत
गोविन्द-गोविन्द कर उठे,मार लिया मैदान
टीवी की टीआरपी में,सांसद हुये बेजान.
सांसद हुये बेजान ,रजत शर्मा से की बात
दी अपनी सफ़ाई,सोचा मैंने दे दी मात.
गुरू चक्रधर,चेले ने मिलायी तुकबन्द
तो वाह्-वाह्,नहीं तो झापड देना रसीद.
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