इन दिनों मोहल्ला वाले अविनाश जी सहित उनके तमाम खास दोस्तों ने बेटी का ब्लाग का संचालन शुरू किया है। इसके तमाम पोस्टों को पढा हूँ। भले ही सभी- सभी अपनी बेटियों को लेकर अपने अनुभव बाँट रहे हों, लेकिन वे कहाँ जायेंगे जो कुंवारे हैं और शादी के बाद बेटी की चाहत रखते हैं।
मेरा जन्म उस परिवार में हुआ जहाँ बेटियों की अधिकता थी।जहाँ मैं घर में एकलौता बेटा था वहीं मेरी चार बहनें थी। तीन बहनों के बाद मेरा जनम हुआ। एक छोटी बहन मेरे बाद हुई। यह तो था हमारा कुनबा। लेकिन जब गर्मी या दशहरे में गाँव जाते तो संयुक्त परिवार होता। मेरे दो चाचा थे। हम सभी भाई-बहन गाँव की गलियों में, खेत-खलियानों में खूब मौज- मस्ती करते।
गाँव में ग्यारह बहनें और महज छः भाई होते। बडे चाचा को चार बेटियाँ और दो बेटे थे। छोटे चाचा को तीन बेटियाँ और तीन बेटे थे। लेकिन खास बात यह थी कि कभी भी पापा सहित दोनों चाचा को कभी यह चिंता नही देखी की घर में इतनी लक्ष्मी है, उसकी शादी कब, कहाँ और कैसे होगी।यह बात अलग थी कि खेतीहर जमीं थी और बडे चाचा टीचर थे और पापा भी कालेज में अध्यापन करते हैं। खेतों में फसल इतना होता कि सभी लोग सालों भर फसल खाते और उसे साल के अंत में नई फसल आने से पहले पुराने को बेच देते या जो छोटे वाले चाचा को करना होते वह उनके जम्मे होता।
यह तो हुई हमारे घर की बात, अब मैं असली मुद्दे पर आता हूँ। मेरे यहाँ सबसे बड़ी बहन जिसे सभी लोग प्यार से दीदी कहते थे, उनका इंतकाल गाँव में हैजे से हो गया। सभी लोग गर्मी की छुट्टी में गाँव गए थे। मैं उससे एक हफ्ता पहले वापस तारापुर आ गया था, जहाँ पापा कालेज में थे। मेरे साथ बाबा यानी दादाजी रहते थे। दादी मेरे जनम से पहले गुजर गयी थी।
गाँव से तारापुर उस दौर में आने पर पूरा दिन लगता था। सुल्तानगंज में गंगा पर करना होता था। कई बार बस और ट्रेन के सही समय पर गंगा तट पर नही पहुचाने पर अगवानी यह सुल्तानगंज के दुकानों में रात जाग कर गुजरनी पड़ती थी। फोन की सुविधा तक नही थी। संदेश पहुचने में समय लगता।
उस दिन जब मेरे चचेरे भाई पिंटू भाई जब शाम में दीदी की मौत की खबर लेकर आये थे तब मैंने पहली बार अपने पापा को रोते देखा था। उससे पहले मुझे हमेशा कड़क दिखाई पढ़ते थे। दीदी की मौत की बात पूरे तारापुर में फ़ैल गयी। तभी कालेज के प्रिंसिपल बालेश्वर बाबु घर पर आये थे। मुझे आज भी फिल्म की तरह वह भूली-बिसरी बात आंखों के सामने गुजर जाता है।उस सदमे से अभी तक शायद ही कोई घर का सदस्य मुक्त हुआ हो। बाबा उस समय गाँव में थे, वह दीदी को न बचा पाने का जम्मेदार खुद को मानते थे। उस दौर में हमारे गाँव में एक अस्पताल नही था। पिछले पांच साल से गाँव गया नही, लेकिन पापा और मम्मी जाते रहती है, बताती है एक अस्पताल खुल गया है।
घर में तीनों बहनों ने जम कर पढाई की, सभी का ध्यान होता की पापा या मम्मी को कभी भी दीदी का जाना नही खले। मैं या तीनो बहनों ने तय किया कि कोई भी व्यक्ति ऐसे कोई काम न करे जिससे पापा और मम्मी को दिल को तकलीफ हो। तीनों बहन की शादी पापा ने जहाँ कहा, सभी ने हामी भरी। बड़ी दोनों बहने फ़िलहाल गणित में शोध कर रही है। संयोग वस् हमारे तीनों बहनोई भी काफी अच्छे हैं और उनकी भी इच्छा रहती है कि उनसे कोई ऐसी हरकत या उनके मुँह से ऐसे बात न निकले जिससे दोनो व्यक्तियों को तकलीफ हो।
दो बहनों के इंदौर और छोटी के जयपुर में रहने के कारण भागलपुर में एक साथ मुलाक़ात नही हो पाती। पापा बताते हैं कि घर काफी खाली-खाली लगता है। दिसम्बर में मैं सिर्फ एक दिन के लिए घर गया, पर जहाँ पहले हमेशा घर में रहता था, वही जाने के बाद बाहर ही घूमता रह।
घर में पापा और मम्मी को बेटियों को कमी नही खले इस कारण पिछले पांच साल से शायद ही ऐसा कोई दिन बीता, जिस दिन मैंने फोन नही किया हो। तीनो बहने भी हर दिन फोन करती है। कभी-कभी बड़ी बहन फोन कर ली और सभी को हलचल बता देती है। पापा और मामी भी छुट्टी मिलने पर इंदौर जाता हैं। मैं भी अक्सर जाता हूँ।
२००७ में पापा नौकरी से अवकाश ग्रहण करते, लेकिन नीतिश सरकार ने दो साल और सेवा बढा दी। दोनो आदमी बेटी की याद में जी रहें हैं, आपस में बातचीत वधू का मुद्दा रहता है, कि ऐसे लडकी आये जो बेटी की तरह हो और मम्मी भी ऐसी की सपने हैं कि उसे अपनी मम्मी जैसा प्यार दूँ।
अब बताएं कि घर कि बेटियों कि कहानी किसे सुनाएँ।
5 comments:
विनीत, पहली बार आपके धाम आया हूं। बहुत आत्मीय,मार्मिक संस्मरण लिखा है। बेटियों के ब्लाग का संदर्भ लेना भी सार्थक रहा। बहनोई संयोगवश ही अच्छे निकल जाएं तो घर भर की, जीवनभर की खुशियों का सुभीता हो जाता है।
बेटियां ही सर्वोच्च शक्ति हैं। माँ भी वही हैं। धरणि हैं वे।
मेरे ब्लाग http://shabdavali.blogspot.com/2008/01/blog-post_27.htmlपर लिखी आज की पोस्ट ज़रूर पढ़ें। माँ की महिमा पर है।
मार्मिक
आपका लिखा पसंद आया।
आपकी तरह हम भी यही सोचते है कि जिनके बेटी नही है वो कहाँ जाये , हमारे दो बेटे है।
आपके घर का प्यार भड़ा माहौल देखकर बहुत अच्छा लगा.. अपने घर कि याद आ गई..
आप यहीं सुनाते रहें.. हम सुनने को तैयार बैठे हैं..
आज वही भाग्यशाली है जिसकी बेटी है
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