फिर दिल्ली के पत्रकार मित्रों से बात कर उनके घर के फोन नम्बर ले कर कन्फर्म किया और राजूजी ने दिल्ली ऑफिस फोन कर खबर लिखाई। लेकिन राजूजी ने मुझे इत्तला कर दी कि तैयार रहना, हो सकता है कि देर रात या सुबह कमलेश्वरजी के घर इरोज गार्डन जाना पड़े।
रात में फिर मैंने अपने मित्र स्नेहा को फोन कर मामला जानना चाहा, लेकिन उसने कहा पापा यानी अशोक चक्रधर बाहर हैं, इस कारण मैं क्या सहायता कर सकती हूँ। फिर थोडी देर बाद स्नेहा का फोन आया, बताई, पापा तो ट्रेन में है, उन्हें भी पता नहीं है। उसे आश्वस्त करते हुवे मैंने कहा चिंता के बात नही है, रात काफी हो रही है, सुबह बात करते हैं।
सुबह आठ बजते ही राजूजी का फोन आ गया, कि तैयार हो जाओ, मैं आ रहा हूँ। फोटोग्राफ़र सुभाष शर्मा भी साथ जायेंगे। जल्दी से तैयार हो कर दफ्तर पंहुचा। फिर तीनो इरोज गार्डन की और चल पड़े। सुबह का समय। दिल्ली से कुछ समाचार चैनल के पत्रकार वाहन मौजूद थे। कुछ सहपाठी भी थे। दुआ सलाम होने के बाद खबर लेने में जुट गए।
पता चला, कमलेश्वरजी का शरीर उनके पहले तल पर स्थित उनके बैठक में रखा गया है, लेकिन किसी भी पत्रकार को नही जाने दिया जा रह है। कुछ पत्रकार नीचे खडे थे, तो कुछ दरवाजे पर दस्तक देकर निराश हो कर लौट जा रहे थे। तत्काल मेरे दिमाग ने कुछ सोचा और मैंने राजूजी से सवाल किया, भाई साहब, ऐसे काम नही चलने वाला है। रिपोर्टिंग तो करनी है। उन्होने कहा, क्या उपाय है। मुझे अन्दर का सीन देखा नही जाएगा।
भाई साहब, आप बाहर नजर रखिये, और मैं पत्रकार की भांति नही, बल्कि उनके चाहने वाले और बतौर पाठक घर में जाऊंगा। कमरे के अन्दर गया। कोने में खडे होकर चुपचाप सभी चीजें देखता रहा। आने वाले रोते तो दिल रोने लगता। खुद को सांत्वना देता। अंदर गौरीनाथ जी भी कुछ देर में आ गए। हिमांशु जोशी सहित और भी कई साहित्यकार आये। करीब पांच घंटे घर के अंदर रहा।
कमलेश्वरजी के दामाद आलोकजी और उनकी बेटी मानू भी कई घंटे बाद आयी। तब तक हिन्दू रीति रिवाज से उनके सिर की ओर धूप और कान्हा जी की मूर्ति रख्खी गयी थी। उनका कमरा अस्त-व्यस्त था।अन्दर का दृश्य २८ जनवरी,२००७ के हिंदुस्तान के स्पेशल पेज पर छपा था। करीब दो बजे उनकी अन्तिम यात्रा शुरू हुई। यहाँ तक ही मेरा साथ था उनका। राजूजी ने उनके यहाँ काम करने वाले रघुनाथ और उसके पिताजी से बात की थी। उनकी यादें एन सी आर पेज के सभी संस्करण में छपी थी।
करीब पांच घंटे कमरे के अन्दर रहने के बाद जब भूके- प्यासे दोनो आदमी खबर लिखने बैठे, दिमाग सुन्न हो रहा था। खबर लिखते कई बार तो पड़ा। सभी साथी सिर्फ हमारा मुँह देख रहे थे। कोई कुछ नही बोल रह था।
mujhe शख्सियत कालम भी लिखना था। संयोग वश फिल्म मैं हूँ ना में शाहरुख़ खान के साथ काम करने वाले कुनाल से बात हो गयी और उसने जहाँ अपनी तस्वीर मुझे ई-मेल तुरंत कर दिया, वहीं कालम से जूरी तमाम बातें तुरन बता डाली, जबकि वह फिल्म की शूटिंग में मुम्बई में व्यस्त था।
mujhe शख्सियत कालम भी लिखना था। संयोग वश फिल्म मैं हूँ ना में शाहरुख़ खान के साथ काम करने वाले कुनाल से बात हो गयी और उसने जहाँ अपनी तस्वीर मुझे ई-मेल तुरंत कर दिया, वहीं कालम से जूरी तमाम बातें तुरन बता डाली, जबकि वह फिल्म की शूटिंग में मुम्बई में व्यस्त था।
दूसरे दिन हिंदुस्तान में हमारी खबर बेहतरीन होने के कारण हमने और राजूजी ने रहत की साँस ली, लेकिन उन माहौल से उबरने में कई हफ्ते लग गए।
समाप्त
2 comments:
कमलेश्वर जी के निधन पर दुःख है।भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।
……कमलेश्वर जैसा व्यक्तित्व बन पाना मुश्किल ही है किसी का!!
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