5/22/2008

समाज में बरक़रार है भेदभाव

समाज में बरक़रार है भेदभाव
भारत में माना जाता है की हमारे यहाँ स्त्रियाँ काफी प्रगति कर रही हैं। कुछ हद तक यह बात ठीक भी है। लेकिन अभी भी कम पढी-लिखी महिलाओं में यह भावना गहरे तक धंसी हुयी है की स्त्रियाँ पुरूष के मुकाबले कमतर है। हमारे यहाँ स्त्रियाँ समर्पिता की भूमिका में है। धर्म का खासा दबाव है उन पर। पैदा होने से ही उसके अन्दर ऐसे संस्कार दाल दिए जाते हैं। कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसा अपराध है जिसमें महिला की सहमति से इसे अंजाम दिया जाता है। उसके अन्दर बचपन से पड़े संस्कार और घर के पुरूष सदस्यों का दबाव उसे ऐसा करने के लिए मजबूर कर देते हैं।
इस सम्बन्ध में कत्थक नृत्यांगना पुनीता शर्मा से देशबंधु की बातचीत कुछ यूं है-

(पुनीता शर्मा राग-विराग नाम से ब्लाग भी लिखती हैं। यहाँ आप कत्थक की बारीकी से अवगत होंगे। और वह समाज के ज्वलंत मुद्दों पर जम कर शब्दबाण चलाती हैं...विनीत )

हर क्षेत्र में महिलाएं बराबरी से योगदान दे रही हैं, तब फ़िर लड़कियां अवांछित क्यों हैं?
- इसका कारण उनके साथ भेदभाव है। यहाँ शिक्षा और रोजगार में स्त्रियों के साथ भेदभाव की स्थिति है। मैं तो यही कहूंगी की नारी पुरूष के तुलना में अधिक योग्य है। इसीलिए पुरूष प्रधान समाज उसके साथ भेदभाव का रवैया अपनाता है। इसका उदाहरण है- शादी में लड़के और लडकी के उम्र में अन्तर करना। हमारे यहाँ विवाह में विवाह में लड़के की उम्र लडकी की तुलना में तीन से पांच साल अधिक रखी जाती है। क्योंकि लड़कियां लड़कों से शारीरिक व मानसिक रूप से पहले परिपक्व हो जाती है। इस तथ्य को विज्ञान भी मानता है। अगर लडकी की उम्र बराबर होगी, तो वह हर बात आंख मूंदकर स्वीकार नही करेगी। मेरा मानना है की जाति, वर्ग, लिंग, नस्ल के आधार पर भेदभाव नही होना चाहिए।
परवरिश और घर के संस्कार की इसमे कितनी भूमिका है?
-तकरीबन नब्बे फीसदी घरों में लड़के और लडकी के बीच भेदभाव किया जाता है। लड़कियों पर तरह-तरह की बंदिशें लगाई जाती है, जबकि लड़कों को हर तरह की आजादी मिलती है। दिल्ली जैसे महानगर में भी लड़कियों को कहा जाता है की शाम छः बजे तक घर आ जायें।
शिक्षा इस मानसिकता को बदलने में कितनी कारगर हो सकती है?
-शिक्षा खासतौर से लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई से निश्चित रूप से फर्क आया है। लेकिन इसके जरिये मानसिकता में बदलाव बहुत धीरे-धीरे आ रहा है। क्योंकि महिलाओं को बहुत अधिक दबाया गया है। इसके लिए कुछ कदम भी उठाने होंगे। इसके साथ ही भ्रूण हत्या और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार व भेदभाव को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।
समाज के नजरिये में बदलाव कैसे लाया जा सकता है?
-समाज में जागरूकता फैलाने कर लिए शिक्षा या भाषण व सेमिनार नाकाफी है। इसके लिए व्यावहारिक नजरिया अपनाने की जरुरत है। इसके लिए नुक्कड़ नाटक, बैले, सोप ऑपेरा, नौटंकी जैसे मनोरंजन के माध्यमों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। दिल्ली के नरेला में सत्यवती कालेज की और से नारी शोषण पर एक नुक्कड़ नाटक किया गया। नाटक खत्म होते ही वहां आयी कुछ औरतों ने अपने पतियों से लड़ाई शुरू कर दी की तुम भी तो ऐसे अत्याचार करते हो। यानी इनके जरिये कहीं न कहीं जाग्रति तो आयी है।
भ्रूण हत्या पर मैंने 'परचम बनी महिलाएं' नाम से एक बैले के कई शो किए हैं। अभी हाल ही में मैंने झारखण्ड के दुमका में इसका शो किया। दर्शकों में इसे लेकर जबरदस्त प्रतिक्रिया रही और यह झलक मिली की वे इस बुराई को लेकर जागरूक हुए हैं।
अगर आपको इस स्थिति को सुधारने की निर्णायक भूमिका दे दी जाए तो आपका पहला कदम क्या होगा?
-मैं सबसे पहले ऐसा करने वालों पर तगड़ा जुर्माना और दंड देने का प्रावधान करूंगी। लेकिन इसके लिए जांच की लम्बी प्रक्रिया , अदालत आदि की जरूरत नही होगी, बल्कि चीन की तरह मौके पर ही दण्डित किया जायगा.

5/21/2008

बाजार में हिन्दी

बाजार में हिन्दी

लगभग २२ लोक भाषाओं से समृद्ध हिन्दी का बाजार आज अंगरेजी वालों के लिए ईर्ष्या का विषय है। बाजार में हिन्दी आ रही है और छा रही है। संचार के सभी माध्यमों को भा रही है हिन्दी। विज्ञापन जगत को लुभा रही है हिन्दी। वह पूरे बाजार में अपने झंडे गाड़ रही है। टीवी, प्रिंट, इंटरनेट, मोबाइल जैसे सभी माध्यमों का हिन्दीकरण हो रहा है। हिन्दी में धडाधर ब्लाग महाराज छप रहे हैं। हिन्दी सिनेमा ने वैश्विक चोला पहले ही पहन लिया है। हालीवुड भी हिन्दी में आ रहा है। हिन्दी अख़बार तो पाठकों के लिहाज से अंगरेजी से आठ गुना आगे निकल गए हैं। अब तो बड़े-बड़े विदेशी प्रकाशन कम्पनियाँ भी हिन्दी पुस्तकों के प्रकाशन में कूद रही हैं। हिन्दी ने बहुत जगहों पर अंगरेजी के वर्चस्व को तोडा है। बाजार में हिन्दी के वर्चस्व की यह जंग दिलचस्प होने जा रही है।

फेर फेर का फेर है हिन्दी का बाजारवाद

विनीत उत्पल

हिन्दी के फेरे में बाजार या बाजार के फेरे में हिन्दी, यह एक ऐसा सवाल है जिसका न तो साहित्यकार जबाव दे सकते हैं और न ही बाजार के धुरंधर। इतना तो तय है की जिधर मुनाफे की बात होगी, वहां बाजार होगा। हालांकि, यह बात और है की जहाँ मुनाफे या घाटे की बात होगी, वहां हिन्दी मौजूद हो या न हो।

पिछले कुछ दशकों से हिन्दी पर जिस कदर बाजार का प्रभाव पड़ा है, वह गौरतलब है। संचार के माध्यमों मसलन, समाचार पत्र, टीवी, इंटरनेट, फ़िल्म ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ हिन्दी की पैठ लगातार बढ़ती जा रही है। हिन्दी का क्षेत्र की व्यापकता के बढ़ने के कारण जहाँ हिन्दी के समाचार पत्र और पत्रिकाएँ बाजार के बड़े हिस्से पर काबिज हो रही हैं, वही विज्ञापन की दुनिया ने भी हिन्दी के बाजार को और विस्तार प्रदान किया है। भारत में हिन्दी के समाचार पत्रों के पाठकों की संख्या सबसे अधिक है। पूरी दुनिया में सबसे अधिक फिल्म हिन्दी भाषा में बनती हैं।

इंटरनेट की दुनिया में जिस तरह हिन्दी ने घुसपैठ की है की गूगल और कई दूसरी वेबसाईटों ने हिन्दी में भी अपनी सेवा देना शुरू कर दिया है। कहीं न कहीं हिन्दी के बाजार का प्रभाव है की अब आप हिन्दी शब्दों को और उससे संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ओरकुट पर आप हिन्दी में संवाद आदान-प्रदान कर सकते हैं। ब्लाग की दुनिया ने जहाँ आम लोगों को मन की बात खुले तौर से लिखने का स्पेस दिया, वही अब हिन्दी में चैटिंग करने की सुभिधा भी इंटरनेट यूजर्स को मिलने लगी है।

जहाँ तक ब्लाग की दुनिया की बात है, फिलहाल हिन्दी में करीब तीन हजार ब्लागर हैं, जो दुनिया के कोने-कोने से अपनी बात-जज्बात को पाठकों के सामने पेश कर रहे हैं। यह और बात है की जिस कदर अंगरेजी ब्लागर को विज्ञापन के जरिये पैसे आ रहा है, उस स्थिति में हिन्दी के ब्लागर नही पहुँच पाये हैं। लेकिन भविष्य में इसकी अपार संभावनाएं हैं।

इंटरनेट के बाजार की कहीं न कहीं हिन्दी उपभोक्ताओं पर नजर है, तभी तो गूगल ने गुडगाँव में ब्रांच स्थापित की है, जहाँ हिन्दी में विज्ञापन बनने की तैयारी की जा रही है। बताया जाता है की इसी वर्ष गूगल अपने यूजर्स के ब्लाग या ई-मेल पर हिन्दी में विज्ञापन पेश कर देगा। जहाँ तक विज्ञापन की बात है तो इसकी मनमोहक दुनिया को पंख लगे हुए हैं। वर्तमान में बाजार ने एक नयी हिन्दी ईजाद की है। वह है हिन्दी और अंगरेजी को मिलकर बनी हिंगलिश।

इसका जहाँ विज्ञापन की दुनिया में बखूबी प्रयोग किया जाता है, वही मेट्रो शहर में युवाओं की जुबान के भाषा बनती जा रही है। इतना ही नही, मोबाइल दुनिया में भी खासकर एसऍमएस करने में भी इस भाषा का बखूबी प्रयोग हो रहा है। विभिन्न कम्पनियाँ हिन्दी और अंगरेजी को मिलकर कुछ इस तरह विज्ञापन पेश कर रही हैं की उसकी पंच लाईन हर किसी के जुबान पर काबिज हो रही है। इस दौर में कहीं न कहीं बाजारवाद हिन्दी को प्रभावित कर रहा है। यह हिन्दी के बाजार पर वर्चस्व का ही प्रभाव है की हिन्दी फिल्मों के नाम और गाने भी हिंगलिश भाषा में प्रचलन में आ रहे हैं। चाहे फ़िल्म जब वी मेट का नाम हो या कोई और फ़िल्म।

फिल्मी गानों में भी हिंगलिश शब्दों का जमकर प्रयोग किया जाने लगा है। हिन्दी जगत में बाजारवाद इस कदर पैठ कर चुका है की सेंसेक्स जैसे शब्दों का हिन्दी अर्थ न धुंध कर उसी शब्दों का बहुतायत से प्रयोग किया जाने लगा है। हिन्दी ने वर्तमान अर्थशास्त्र की नयी परिभाषा को जनम दिया है।

बहरहाल, मामला बाजारवाद का है, मामला हिन्दी जगत का है। मामला मुनाफे का है, मामला puure हिन्दी क्षेत्र का है। लेकिन तय है की जिस कदर हिन्दी बाजार को प्रभावित कर रही है की आने वाले समय में बाजार पर हिन्दी का आधिपत्य होना तय है।

साभार- देशबंधु, नयी दिल्ली, १८ मई, २००८