बाजार में हिन्दी
लगभग २२ लोक भाषाओं से समृद्ध हिन्दी का बाजार आज अंगरेजी वालों के लिए ईर्ष्या का विषय है। बाजार में हिन्दी आ रही है और छा रही है। संचार के सभी माध्यमों को भा रही है हिन्दी। विज्ञापन जगत को लुभा रही है हिन्दी। वह पूरे बाजार में अपने झंडे गाड़ रही है। टीवी, प्रिंट, इंटरनेट, मोबाइल जैसे सभी माध्यमों का हिन्दीकरण हो रहा है। हिन्दी में धडाधर ब्लाग महाराज छप रहे हैं। हिन्दी सिनेमा ने वैश्विक चोला पहले ही पहन लिया है। हालीवुड भी हिन्दी में आ रहा है। हिन्दी अख़बार तो पाठकों के लिहाज से अंगरेजी से आठ गुना आगे निकल गए हैं। अब तो बड़े-बड़े विदेशी प्रकाशन कम्पनियाँ भी हिन्दी पुस्तकों के प्रकाशन में कूद रही हैं। हिन्दी ने बहुत जगहों पर अंगरेजी के वर्चस्व को तोडा है। बाजार में हिन्दी के वर्चस्व की यह जंग दिलचस्प होने जा रही है।
फेर फेर का फेर है हिन्दी का बाजारवाद
विनीत उत्पल
हिन्दी के फेरे में बाजार या बाजार के फेरे में हिन्दी, यह एक ऐसा सवाल है जिसका न तो साहित्यकार जबाव दे सकते हैं और न ही बाजार के धुरंधर। इतना तो तय है की जिधर मुनाफे की बात होगी, वहां बाजार होगा। हालांकि, यह बात और है की जहाँ मुनाफे या घाटे की बात होगी, वहां हिन्दी मौजूद हो या न हो।
पिछले कुछ दशकों से हिन्दी पर जिस कदर बाजार का प्रभाव पड़ा है, वह गौरतलब है। संचार के माध्यमों मसलन, समाचार पत्र, टीवी, इंटरनेट, फ़िल्म ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ हिन्दी की पैठ लगातार बढ़ती जा रही है। हिन्दी का क्षेत्र की व्यापकता के बढ़ने के कारण जहाँ हिन्दी के समाचार पत्र और पत्रिकाएँ बाजार के बड़े हिस्से पर काबिज हो रही हैं, वही विज्ञापन की दुनिया ने भी हिन्दी के बाजार को और विस्तार प्रदान किया है। भारत में हिन्दी के समाचार पत्रों के पाठकों की संख्या सबसे अधिक है। पूरी दुनिया में सबसे अधिक फिल्म हिन्दी भाषा में बनती हैं।
इंटरनेट की दुनिया में जिस तरह हिन्दी ने घुसपैठ की है की गूगल और कई दूसरी वेबसाईटों ने हिन्दी में भी अपनी सेवा देना शुरू कर दिया है। कहीं न कहीं हिन्दी के बाजार का प्रभाव है की अब आप हिन्दी शब्दों को और उससे संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ओरकुट पर आप हिन्दी में संवाद आदान-प्रदान कर सकते हैं। ब्लाग की दुनिया ने जहाँ आम लोगों को मन की बात खुले तौर से लिखने का स्पेस दिया, वही अब हिन्दी में चैटिंग करने की सुभिधा भी इंटरनेट यूजर्स को मिलने लगी है।
जहाँ तक ब्लाग की दुनिया की बात है, फिलहाल हिन्दी में करीब तीन हजार ब्लागर हैं, जो दुनिया के कोने-कोने से अपनी बात-जज्बात को पाठकों के सामने पेश कर रहे हैं। यह और बात है की जिस कदर अंगरेजी ब्लागर को विज्ञापन के जरिये पैसे आ रहा है, उस स्थिति में हिन्दी के ब्लागर नही पहुँच पाये हैं। लेकिन भविष्य में इसकी अपार संभावनाएं हैं।
इंटरनेट के बाजार की कहीं न कहीं हिन्दी उपभोक्ताओं पर नजर है, तभी तो गूगल ने गुडगाँव में ब्रांच स्थापित की है, जहाँ हिन्दी में विज्ञापन बनने की तैयारी की जा रही है। बताया जाता है की इसी वर्ष गूगल अपने यूजर्स के ब्लाग या ई-मेल पर हिन्दी में विज्ञापन पेश कर देगा। जहाँ तक विज्ञापन की बात है तो इसकी मनमोहक दुनिया को पंख लगे हुए हैं। वर्तमान में बाजार ने एक नयी हिन्दी ईजाद की है। वह है हिन्दी और अंगरेजी को मिलकर बनी हिंगलिश।
इसका जहाँ विज्ञापन की दुनिया में बखूबी प्रयोग किया जाता है, वही मेट्रो शहर में युवाओं की जुबान के भाषा बनती जा रही है। इतना ही नही, मोबाइल दुनिया में भी खासकर एसऍमएस करने में भी इस भाषा का बखूबी प्रयोग हो रहा है। विभिन्न कम्पनियाँ हिन्दी और अंगरेजी को मिलकर कुछ इस तरह विज्ञापन पेश कर रही हैं की उसकी पंच लाईन हर किसी के जुबान पर काबिज हो रही है। इस दौर में कहीं न कहीं बाजारवाद हिन्दी को प्रभावित कर रहा है। यह हिन्दी के बाजार पर वर्चस्व का ही प्रभाव है की हिन्दी फिल्मों के नाम और गाने भी हिंगलिश भाषा में प्रचलन में आ रहे हैं। चाहे फ़िल्म जब वी मेट का नाम हो या कोई और फ़िल्म।
फिल्मी गानों में भी हिंगलिश शब्दों का जमकर प्रयोग किया जाने लगा है। हिन्दी जगत में बाजारवाद इस कदर पैठ कर चुका है की सेंसेक्स जैसे शब्दों का हिन्दी अर्थ न धुंध कर उसी शब्दों का बहुतायत से प्रयोग किया जाने लगा है। हिन्दी ने वर्तमान अर्थशास्त्र की नयी परिभाषा को जनम दिया है।
बहरहाल, मामला बाजारवाद का है, मामला हिन्दी जगत का है। मामला मुनाफे का है, मामला puure हिन्दी क्षेत्र का है। लेकिन तय है की जिस कदर हिन्दी बाजार को प्रभावित कर रही है की आने वाले समय में बाजार पर हिन्दी का आधिपत्य होना तय है।
साभार- देशबंधु, नयी दिल्ली, १८ मई, २००८
2 comments:
ये तो शुरुआत है.......देखते हैं आगे क्या क्या होता है
आभार यह आलेख पढ़वाने का.
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