कपिल देव से एक बातचीत
आज जब पूरा देश १९८३ में भारत को क्रिकेट विश्वकप जीतने के २५ साल पूरा होने का जश्न मना रहा है। कपिल देव का गुणगान कर रहा है। उस टीम को सम्मान दिया जा रहा है जिस टीम ने देश का सम्मान बढाया । वहीं कपिल देव के जीवन मैं कई मौके आए जब वे बीसीसीआई से नाखुश थे। उनके मन में काफी रोष था।
बात २००५-०६ की है, उस दौर में जहाँ भारतीय क्रिकेट टीम के कोच लगातार विदेशी रखे जा रहे थे, वही देश के काबिल खिलाड़ियों को नजर अंदाज किया जा रहा था। उसी दौर में कई बार मेरी बातचीत कपिलदेव से हुई। एक इंटरव्यू करनी थी, उनकी नजर में सफलता क्या है, को लेकर।
अभी भी बीसीसीआई को लेकर उनके मन में गुस्सा जो गुस्सा था, वह मेरे सामने गुजर जाता है। जब भी उनसे बातचीत हुई, उन्होंने सीधे तौर पर कहा की विदेशों में पढ़ना और विदेशी कोचों को रखना ही जीवन और टीम की सफलता का मूळ मन्त्र है। उनका कहना था की आज के दौर में जिस तरह लोगों का विचार बदला है, की लगता है कि विदेश जाना और विदेश में पढ़ना, विदेश में ट्रेनिंग लेना ही सफलता की निशानी है।
उस बातचीत में मुझे लगा कि भारत को विश्वकप दिलाने वाले एक सफल कप्तान में कितना रोष है, देश के नीति निर्धारकों के प्रति। उनका गुस्सा बातचीत में साफ झलक रहा था। उन्होंने सीधे तौर पर इंटरव्यू में कहा था कि आज जिस तरह की परिस्थितियां हैं के मैं कदापि ख़ुद को सफल नही मानता।
No comments:
Post a Comment