6/29/2008

किस से बात करूँ, किस से न करूँ

किस से बात करूँ, किस से न करूँ

जब से पत्रकारिता या लेखनी का चस्का लगा, तब से ना जाने कितनों से बात हुई। कभी खास मुद्दों पर तो कभी किसी की अपनी निजी जिन्दगी को लेकर। इस कड़ी में तसलीमा नसरीन, सुरेन्द्र मोहन, किरण बेदी, इंदिरा गोस्वामी, अमृता प्रीतम, शोवना नारायण, सोनल मानसिंह, सोनू निगम, ऋचा शर्मा, देवन्द्र प्रसाद यादव, राजवर्धन सिंह राठोड हों या फ़िर कोई और, जम कर बात की। यहाँ तक की सिविल सर्विस के टापरों का इंटरव्यू लेने में भी अच्छे रूचि रही।

कभी दैनिक जागरण के लिए, कभी दैनिक भास्कर के लिए, कभी हिंदुस्तान के लिए तो कभी प्रभात ख़बर या किसी पत्र या पत्रिका के लिए। जम कर लिखा, लोगों ने जम कर सराहा। संपादकों ने जमकर छापा। यहाँ तक की ऐसी नौबत भी आयी जब हिंदुस्तान के लिए हर रोज एक इंटरव्यू लेना पड़ा, बिना नागा किए। लगभग दो महीने के भीतर यदि पापा की तबियत ख़राब न होती और मुझे भागलपुर नही जाना होता, तो शायद वह एक रिकार्ड होता।

फ़िर भी लगातार हर रोज एक इंटरव्यू लेना कम नही होता। हिंदुस्तान के लिए जो कालम मैं लिखता था, उसका नाम था, शख्सियत। लेकिन दुर्भाग्य यह की फरीदाबाद में लिखने के दौरान हिंदुस्तान के पुल आउट में उसके इंटरनेट संस्करण का पता तो लिखा होता था, लेकिन वहां की खबरें नही होती थी। इस कारण उनमे एक भी इंटरव्यू इंटरनेट पर नही है। और तो और कई इंटरव्यू को मैं सहजकर नही रख पाया।

बहरहाल, इन कड़वी बातों को यही विराम देते हैं और अगली पोस्ट से मेरे द्वारा ली गयी इंटरव्यू आपको पढने को मिलेगी, जो मौके-बेमौके ली गयी है।

No comments: