7/20/2008
विक्रम तलवार को जानना क्या भारतीयों के लिए आवश्यक है ?
यह सही है की बहुत कम ही लोग विक्रम तलवार के नाम से परिचित होंगे और उन्हें जानते होंगे। लेकिन अमेरिका के किसी भी बैंक के अधिकारी से पूछिये, शायद ही इसका जबाव कोई ना में दे। ५९ साल के विक्रम इईक्सैल सर्विस होल्डिंग के एक्जिक्यूटिव चेयरमैन हैं। नयी दिल्ली में पैदा हुए, भारत से एमबीए करने वाले विक्रम ने करीब २६ साल तक बैंक आफ अमेरिका के साथ काम किया।
बातचीत में वह कहते हैं कि जिस दौर में मैं पैदा हुआ उस वक्त बहुत कम ही माता-पिता दोनों नौकरी करते थे, ऐसे ही एक परिवार में मेरी पैदाइश हुई। उन्होंने मुझे सिखाया कि कैसे लोगों के साथ कम किया जाता है। दोनों से मैंने सीखा कि अपने सहयोगियों के साथ किस तरह सामान्य और नेचुरल तरीके से काम करना चाहिए।
वे कहते हैं कि भारत से एमबीए करने का बाद महज २१ साल की उम्र में बैंक आफ अमेरिका में नौकरी करनी शुरू की। मैंने बैंक के लिए अमेरिका, भारत सहित नौ देशों में काम किया। यह वही समय था जब कोई दूसरी नौकरी नही बदल सकता था।
२६ साल कम करने के बाद मैंने बैंक से अवकाश लेने का निश्चय किया। इसी क्रम में मैंने पत्नी से कहा मैं भारत वापस जाना चाहता हूँ और वहां जमकर गोल्फ खेलूंगा। उसने कहा, हमलोग देखेंगे। इसके महज छः महीने बाद उसने मुझे नौकरी करते हुए पाया।
मैंने दो साल तक एर्नेस्ट एंड यंग के लिए कम किया। बैंक आफ अमेरिका के पुराने सहयोगी रोहित कपूर के साथ इईक्सैल के स्थापना की। हाल में जहाँ मैं इसका चेयरमैन बना और रोहित चीफ आपरेटिंग आफिसर से सीईओ बन गया है। वह मुझसे करीब १५ साल छोटा है। हम दोनों अपनी समझदारी से काम करते हैं। मैंने कभी उससे यह नही कहा कि मैं तुमसे बड़ा हूँ और मेरा अनुभव अधिक है।
अधिकतर कंपनी के संस्थापक अपने काम में तेजी लाना चाहते हैं। इसके लिए वह अधिक से अधिक कम करते हैं। ऐसे में नए और युवा लोग पीछे रह जाते हैं और वह सोचते हैं कि इस कंपनी में उनके आगे बढ़ने के सम्भावना नही है। मैं इस बात को महसूस करता था इस कारण हमारी कंपनी में ऐसा नाम हो और युवाओं को कम करने का जमकर मौका दिया जाए।
हमारी कंपनी का मुख्यालय न्यूयार्क में है। लेकिन अधिकतर कारोबार भारत और फ्फिलिपिंस में है। मेरा आधा समय दुनिया को घूमने और आधा समय भारत में बीतता है।
वे कहते हैं कि पारंपरिक तौर से ओउत्सोर्सिंग के तहत कालसेंटर और नानक्रिटिकल त्रंजन्स्क्सन को माना जाता है। समुद्र पार की यह इंडस्ट्री आज के दौर में यह एक अलग मुकाम हासिल करने में सफल हुआ है।
दूसरों कि भांति हमलोग भी बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में एक अलग मुकाम हासिल करने में लगे हैं।
मसलन, संपत्ति से जुड़े मामलों कि शिकायत को देखने के आलावा रिस्क मैनेजमेंट से सम्बंधित मामलों में लोगों को सलाह देने का काम हमारी कंपनी करती है।
पुराने दिनों को याद कर तलवार बताते हैं कि कई बार कंपनी को मुश्किल हालात का भी सामना करना पड़ा है। जब हमने १९९९ में कंपनी की शुरुआत की थी तब जीई कैपिटल सर्विस के चेयरमैन और सीईओ गैरी वेंदत्त बतौर चेयरमैन हमारे साथ थे। हमलोग भारत में सेवा मुहैया कराने के लिए तीसरी पार्टी के खोज कर रहे थे। हमलोगों को कोई फंड नही मिल रहा था उस वक्त गैरी हमलोगों कि सहायता की। जब वह कंसेको के चेयरमैन बने तब उन्होंने भारत में ओउत्सोर्स करने का निश्चय किया
इसे पाने के लिए २००१ में कंसेको ईक्शैल लाये लेकिन एक साल बाद कंसेको दिवालिया हो गया। उस दौर में नौबत ऐसी आ गयी कि अपने कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नही थे। ऐसे ही समय में ओके हिल कैपिटल पार्टनर और ऍफ़टी वेंचर्स के साथ ईक्शैल को वापस लाये. नयी क्लईन्त को जोड़े और किसी भी नयी कर्मचारी को नही रखा। इस कारण बाजार में हमारी छवि खासकर कर्मचारियों के बीच एक अलग तरह के रूप में सामने आयी।
एक अच्छा सीईओ और सामान्य के बीच लीडरशिप का अन्तर होता है। कर्मचारी आप क्या चाहते हैं , उसे देखते और समझते हैं। इस बिजनेस में हमलोग घंटों में काम करते हैं। जब आप भारत में रहते हैं , आप दोपहर से काम शुरू करते हैं जो देर रात तक चलता है। लेकिन जब आप अमेरिका में होते हैं तब आपको भारत और अमेरिका दोनों समय के अनुसार काम करना होता है। आपको आपने मातहत से कहना होता है, जब किसी कम को मैं कर सकता हूँ तो आप भी कर सकते हो। कंपनी से जुडी कई परेशानियाँ सामने आती है फ़िर भी आपको उनके साथ हमेशा रहना होता है।
(न्यूयार्क टाइम्स में पैत्रिका आर ओल्सन की बातचीत पर आधारित )
7/18/2008
गूगल के मुनाफा ३५ फीसदी बढ़ा, फ़िर भी आशा के अनुरूप नही
गूगल के मुनाफा ३५ फीसदी बढ़ा, फ़िर भी आशा के अनुरूप नही
सन १९९८ में स्थापित गूगल इंक दूसरे तिमाही में मुनाफे में ३५ फीसदी का इजाफा हुआ है। इंटरनेट सर्च इंजन के इस हद तक लोकप्रिय होने के कारण १.२५ बिलियन अमरीकी डालर की अधिक की कमाई हुई है।
हालाँकि इन बात से इंकार नही किया जा सकता है की गूगल के शेयर होल्डरों को इस बार निराशा हाथ लगी है, क्योंकि आशा के अनुरूप मुनाफा नही हुआ है और उनके एक शेयर का दाम महज ३.९२ अमरीकी डालर है।
गूगल की कमाई ५.४ बिलियन हुई है जो इसी समय के पिछले साल की तुलना में ३९ फीसदी अधिक है। गूगल की सबसे अधिक कमाई आन लाईन विज्ञापन से होती है।
7/05/2008
शहर में तो सब बसेंगे पर कुछ तो...
पिछले कुछ दशकों से कई ऐसे मुद्दें हैं जो भारत और चीन दोनों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को अलग भी कर दे तो भी दोनों देशों के पास आन्तरिक मुद्दे कई हैं जिससे निजात पाने की जद्दोजहद में दोनों देश जूझ रहे हैं। मसलन, जनसँख्या वृद्धि, प्रदूषण सहित शहरों की ओर पलायन व शहरीकरण गंभीर मसला है।
यह सच है की चीन ने अपने यहाँ शहरीकरण को एक नयी पहचान दी है। जिसे भारत ही नही पूरी दुनिया को अपने नजरिये से देखना चाहिए और सीख लेनी चाहिए। चीन में शहरीकरण लगभग चार हजार साल पहले शुरू हो चुका था। एक हजार साल पहले वहां की नदी-घाटियों में बसे गावों का अलग ही रूप था। १९४० के अंत तक वहां करीब ६९ शहर थे, जिनकी संख्या २००७ में ६७० हो गयी। ग्रामीणों का शहर की ओर लगातार पलायन के कारण ही इसमें करीब दस फीसदी की वृद्धि हुई।
विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है की चीन के ८९ शहरों की जनसँख्या करीब एक मिलियन से अधिक है। जबकि ऐसे शहरों की संख्या अमेरिका में ३७ और भारत में ३२ ही है। पूरी दुनिया शहरीकरण से परेशान होने के बावजूद चीन एक नयी दिशा और इससे निबटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इससे सभी को सबक लेनी चाहिए। 1980 में चीन की शहरी आबादी १९१ मिलियन थी। चीन की आधी आबादी शहरों में बस्ती है।
वर्ल्ड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री जस्टिन लीं कहते हैं, अधिकतर देशों में लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, मसलन चीन में ही नहीं बल्कि एशिया और अफ्रीका में हालत सही नही हैं। ग्रामीण विकास की यात्रा काफी चिंतनीय है। किसी भी देश के लिए शहर का ओउध्योगिक विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और भविष्य में भी निभाएगा।
आख़िर क्या कारण है की चीन में शहरीकरण अपनी सही दिशा में बढ़ रहा है। वर्ल्ड बैंक के डेवलपमेंट रिसर्च ग्रुप के वरिष्ठ सलाहकार शाहिद युसूफ लिखते हैं की चीन ने सभी घरों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया है। प्रवासियों को छोटे और मध्यम शहरों में बसाया है। चीन ने आर्थिक विकास के साथ-साथ शहरी गरीबी पर अंकुश लगाने का कम किया है। वर्तमान में इसकी संख्या बमुश्किल चार से छः फीसदी है। शहरी बेरोजगारी भी काफी कम है। यह तीन से चार फीसदी है।
हालाँकि इस बात से इंकार नही किया जा सकता है की चीन के ग्रामीणों और शहरी लोगों की आमदनी के बीच गहरी खाई है। शहर में जल और वायु प्रदूषण काफी गहरे तौर से समस्या बन चुकी है। प्रवासियों के साथ-साथ गरीबों और बुजुर्गों की सुरक्षा की कोई गारंटी नही है। अभी भी कई ऐसे मसले हैं, जिनसे चीन को उबरना है। मसलन, बेरोजगारी, ऊर्जा, कृषि उत्पाद भूमि, जल ऐसे मामले हैं, जिन पर चीन को ज्यादा ध्यान देना है।
एक अनुमान के मुताबिक, २०२५ तक करीब २०० से २५० मिलियन लोग चीन में शहरों की ओर प्रवास करेंगे। इनकी नौकरी सबसे बड़ी चुनौती चीन सरकार की होगी। शहरी लोग ग्रामीणों की अपेक्षा ३.६ गुना açहिक ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। जबकि यही आंकडा जापान में सात गुना और अमेरिका में ३.५ गुना अधिक है। सड़कों पर मोटर वाहन की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। इससे प्रदूषण काफी बढ़ा है और इससे निजात पाना अपने में एक चुनौती है। पीने के पानी से भी फिलहाल चीन जूझ रहा है और इससे उबरना उसकी पहली प्राथमिकता होगी।
7/03/2008
भारत में हलचल, अमेरिका में डूब रही नाव
भारत में हलचल, अमेरिका में डूब रही नाव
इन दिनों जहाँ भारत में मीडिया में नौकरी, नए अखबार और चैनल के लॉन्च को लेकर कन्याकुमारी से लेकर जम्मू तक हलचल मची है। रीजनल अख़बारों के राष्ट्रीय संस्करण निकलने की होड़ है। वहीं इन दिनों अमेरिकी मीडिया में जमकर मायूसी है। पिछले एक हफ्ते में अमरीकी अख़बार मीडिया में करीब एक हजार नौकरियों को ख़तम किया गया है। साथ ही कई बड़े अखबार बंद होने के कगार पर हैं या अपने को बचाने के लिए जी-जान से लगे हुवे हैं।
इसमें सिर्फ़ छोटे अखबार ही नहीं हैं, बल्कि बल्त्मोर सन, बोस्टन ग्लोव, सन जोस मरकरी न्यूज शामिल हैं।अमेरिका में हालत यह है की सन फ्रांसिस्को जैसे अमीर शहर भी एक भी अख़बार को किसी भी तरह की सहायता नही कर पा रहा है। उसके अस्तित्व को सहेज कर रख पाने के लिए हाथ खड़े कर दिए हैं।
सबसे मजेदार बात यह है की यह समस्या उस दौर में है जब अखबर के इतने पाठक हैं, जो इसके इतिहास में कभी नही हुए। जैसे की हम जानते हैं इन्टरनेट ने दैनिक अखबारों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह ला खड़ा किया है। लेकिन यह भी सत्य है की अख़बारों के पाठकों में भी लगातार वृद्धि हुई है।
नेल्सन आन लाइन सर्वे के मुताबिक, समाचार पत्रों के बेवसाईट ने २००८ के पहले तिमाही में करीब ६६ मिलियन नए दर्शकों को जोड़ा हैं। माना जा रहा है की एक साल में इन्टरनेट यूजर्स के संख्या में करीब बारह फीसदी वृद्धि हुई है। इतना ही नही एक अध्ययन में यह बात भी सामने आयी है की करीब चालीस फीसदी यूजर्स एक बार किसी भी अख़बार के बेवसाईट पर जरूर जाते हैं।
यह सही है की बेव की दुनिया आज का भविष्य है, लेकिन विघ्यापन के मामले में इसका हिस्सा महज दस फीसदी ही है। इससे किसी भी अख़बार को इतना भी धन नही आता की वह अपने रिपोर्टरों को तनख्वाह दे सके।
सबसे दुखद बात तब होती है जब अमेरिकी पत्रकार थामस जेफरसन कहते हैं की अख़बार में विज्ञापन ही एक मात्र सच होता है, जिस पर पूरी तरह विस्वास किया जा सकता है।