भारत में हलचल, अमेरिका में डूब रही नाव
इन दिनों जहाँ भारत में मीडिया में नौकरी, नए अखबार और चैनल के लॉन्च को लेकर कन्याकुमारी से लेकर जम्मू तक हलचल मची है। रीजनल अख़बारों के राष्ट्रीय संस्करण निकलने की होड़ है। वहीं इन दिनों अमेरिकी मीडिया में जमकर मायूसी है। पिछले एक हफ्ते में अमरीकी अख़बार मीडिया में करीब एक हजार नौकरियों को ख़तम किया गया है। साथ ही कई बड़े अखबार बंद होने के कगार पर हैं या अपने को बचाने के लिए जी-जान से लगे हुवे हैं।
इसमें सिर्फ़ छोटे अखबार ही नहीं हैं, बल्कि बल्त्मोर सन, बोस्टन ग्लोव, सन जोस मरकरी न्यूज शामिल हैं।अमेरिका में हालत यह है की सन फ्रांसिस्को जैसे अमीर शहर भी एक भी अख़बार को किसी भी तरह की सहायता नही कर पा रहा है। उसके अस्तित्व को सहेज कर रख पाने के लिए हाथ खड़े कर दिए हैं।
सबसे मजेदार बात यह है की यह समस्या उस दौर में है जब अखबर के इतने पाठक हैं, जो इसके इतिहास में कभी नही हुए। जैसे की हम जानते हैं इन्टरनेट ने दैनिक अखबारों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह ला खड़ा किया है। लेकिन यह भी सत्य है की अख़बारों के पाठकों में भी लगातार वृद्धि हुई है।
नेल्सन आन लाइन सर्वे के मुताबिक, समाचार पत्रों के बेवसाईट ने २००८ के पहले तिमाही में करीब ६६ मिलियन नए दर्शकों को जोड़ा हैं। माना जा रहा है की एक साल में इन्टरनेट यूजर्स के संख्या में करीब बारह फीसदी वृद्धि हुई है। इतना ही नही एक अध्ययन में यह बात भी सामने आयी है की करीब चालीस फीसदी यूजर्स एक बार किसी भी अख़बार के बेवसाईट पर जरूर जाते हैं।
यह सही है की बेव की दुनिया आज का भविष्य है, लेकिन विघ्यापन के मामले में इसका हिस्सा महज दस फीसदी ही है। इससे किसी भी अख़बार को इतना भी धन नही आता की वह अपने रिपोर्टरों को तनख्वाह दे सके।
सबसे दुखद बात तब होती है जब अमेरिकी पत्रकार थामस जेफरसन कहते हैं की अख़बार में विज्ञापन ही एक मात्र सच होता है, जिस पर पूरी तरह विस्वास किया जा सकता है।
2 comments:
हर बड़ी मंदी में खुद से कुछ कम बड़ी मछलियों को उन से बडी़ मछलियां खा जाती है और उन के आहार क्षेत्र पर कब्जा कर लेती हैं। सब से छोटी मछलियों को तो आहार ही बनना है। खाने वाली मछली सबसे बड़ी हो या उस से छोटी। खाए जाने के बाद तो वह कहने आने से रही कि देखो मुझे सब से बड़ी मछली ने खाया।
bhalo dada
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