पिछले कुछ दशकों से कई ऐसे मुद्दें हैं जो भारत और चीन दोनों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को अलग भी कर दे तो भी दोनों देशों के पास आन्तरिक मुद्दे कई हैं जिससे निजात पाने की जद्दोजहद में दोनों देश जूझ रहे हैं। मसलन, जनसँख्या वृद्धि, प्रदूषण सहित शहरों की ओर पलायन व शहरीकरण गंभीर मसला है।
यह सच है की चीन ने अपने यहाँ शहरीकरण को एक नयी पहचान दी है। जिसे भारत ही नही पूरी दुनिया को अपने नजरिये से देखना चाहिए और सीख लेनी चाहिए। चीन में शहरीकरण लगभग चार हजार साल पहले शुरू हो चुका था। एक हजार साल पहले वहां की नदी-घाटियों में बसे गावों का अलग ही रूप था। १९४० के अंत तक वहां करीब ६९ शहर थे, जिनकी संख्या २००७ में ६७० हो गयी। ग्रामीणों का शहर की ओर लगातार पलायन के कारण ही इसमें करीब दस फीसदी की वृद्धि हुई।
विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है की चीन के ८९ शहरों की जनसँख्या करीब एक मिलियन से अधिक है। जबकि ऐसे शहरों की संख्या अमेरिका में ३७ और भारत में ३२ ही है। पूरी दुनिया शहरीकरण से परेशान होने के बावजूद चीन एक नयी दिशा और इससे निबटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इससे सभी को सबक लेनी चाहिए। 1980 में चीन की शहरी आबादी १९१ मिलियन थी। चीन की आधी आबादी शहरों में बस्ती है।
वर्ल्ड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री जस्टिन लीं कहते हैं, अधिकतर देशों में लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, मसलन चीन में ही नहीं बल्कि एशिया और अफ्रीका में हालत सही नही हैं। ग्रामीण विकास की यात्रा काफी चिंतनीय है। किसी भी देश के लिए शहर का ओउध्योगिक विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और भविष्य में भी निभाएगा।
आख़िर क्या कारण है की चीन में शहरीकरण अपनी सही दिशा में बढ़ रहा है। वर्ल्ड बैंक के डेवलपमेंट रिसर्च ग्रुप के वरिष्ठ सलाहकार शाहिद युसूफ लिखते हैं की चीन ने सभी घरों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया है। प्रवासियों को छोटे और मध्यम शहरों में बसाया है। चीन ने आर्थिक विकास के साथ-साथ शहरी गरीबी पर अंकुश लगाने का कम किया है। वर्तमान में इसकी संख्या बमुश्किल चार से छः फीसदी है। शहरी बेरोजगारी भी काफी कम है। यह तीन से चार फीसदी है।
हालाँकि इस बात से इंकार नही किया जा सकता है की चीन के ग्रामीणों और शहरी लोगों की आमदनी के बीच गहरी खाई है। शहर में जल और वायु प्रदूषण काफी गहरे तौर से समस्या बन चुकी है। प्रवासियों के साथ-साथ गरीबों और बुजुर्गों की सुरक्षा की कोई गारंटी नही है। अभी भी कई ऐसे मसले हैं, जिनसे चीन को उबरना है। मसलन, बेरोजगारी, ऊर्जा, कृषि उत्पाद भूमि, जल ऐसे मामले हैं, जिन पर चीन को ज्यादा ध्यान देना है।
एक अनुमान के मुताबिक, २०२५ तक करीब २०० से २५० मिलियन लोग चीन में शहरों की ओर प्रवास करेंगे। इनकी नौकरी सबसे बड़ी चुनौती चीन सरकार की होगी। शहरी लोग ग्रामीणों की अपेक्षा ३.६ गुना açहिक ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। जबकि यही आंकडा जापान में सात गुना और अमेरिका में ३.५ गुना अधिक है। सड़कों पर मोटर वाहन की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। इससे प्रदूषण काफी बढ़ा है और इससे निजात पाना अपने में एक चुनौती है। पीने के पानी से भी फिलहाल चीन जूझ रहा है और इससे उबरना उसकी पहली प्राथमिकता होगी।
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