जामिया मिल्लिया इस्लामिया पर लिखने वाले, बहस करने वाले यहाँ तक की बदनाम करने वालों को जामिया के बारे में जरूर जानना चाहिए। जामिया कोई चावल की हांडी नही है, जो एक छात्र के आतंकवादी होने से वहां के सारे छात्र और टीचर आतंकवादी हो गए। जिसे इस तरह की गलतफहमी हो वह एक बार जामिया की तालीम और तह्बीज आकर देखे। यहाँ के जैसा लोकतांत्रिक माहौल हर किसी को भायेगा, बनिस्पत आपके मन में कोई खोट न हो।
ऐसे में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे अशोक चक्रधर ने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है, उसका एक अंश :
जामिआ मिल्लिआ एक ऐसी संस्था है जिसका जन्म सन उन्नीस सौ बीस में असहयोग और ख़िलाफ़त आन्दोलन के दौरान गांधी जी की प्रेरणा से अलीगढ़ में टैंटों में हुआ था। बाद में दिल्ली के करोलबाग़ इलाके में 13, बीडनपुरा की एक पक्की इमारत में आ गई। सन उन्नीस सौ इकत्तीस में ओखला में इसकी संगे-बुनियाद अब्दुल अजीज़ नाम के एक बच्चे के हाथों रखवाई गई।
और चचा आपको हैरानी होगी कि आज जो सड़क मथुरा रोड से ओखला और बटला हाउस तक जाती है वह छोटे-छोटे बच्चों के श्रमदान से बनी है।
क्या ही जज़्बा रहा होगा, हमारा मुल्क है, हमारा इदारा है। तालीमी मेला लगता था। हिन्दोस्तान पर प्रोजेक्ट दिए जाते थे। अली बंधुओं की मां इस बात पर गर्व करती थीं कि उनके बेटे अंग्रेज़ों के ख़िलाफ मुहिम में जेल चले गए। जामिआ में एक ख़िलाफ़त बैंड था, जो अंग्रेज़ों के विरुद्ध तराने गाता-बजाता था। जामिआ का तराना मुहब्बत की बात करता है।
क्या ही जज़्बा रहा होगा, हमारा मुल्क है, हमारा इदारा है। तालीमी मेला लगता था। हिन्दोस्तान पर प्रोजेक्ट दिए जाते थे। अली बंधुओं की मां इस बात पर गर्व करती थीं कि उनके बेटे अंग्रेज़ों के ख़िलाफ मुहिम में जेल चले गए। जामिआ में एक ख़िलाफ़त बैंड था, जो अंग्रेज़ों के विरुद्ध तराने गाता-बजाता था। जामिआ का तराना मुहब्बत की बात करता है।
जामिआ में जितने भी रहनुमा हुए उन्होंने प्रेम और मुहब्बत का पाठ पढ़ाया और जामिआ के बारे में ये कहा कि पूरे भारत में यह एकमात्र संस्थान है जहां हर मज़हब का आदर करना सिखाया जाता है। इंसान-दोस्ती और वतन-परस्ती सिखाई जाती है। तालीमी आज़ादी, वतन-दोस्ती, क़ौमी यक़जहती, सांस्कृतिक आदान-प्रदान,ज्ञान की विविधता, सादगी और किफ़ायत, समानता, उदारता, धर्मनिरपेक्षता, सहभागिता और प्रयोगधर्मिता यहां के जीवन-मूल्य हैं। वो बच्चे जिन्होंने सड़क बनाई, अब उनमें से कुछ सड़क किनारे बम रखने लगे। मुझे सुबह-सुबह जामिआ के एक उस्ताद मिले। बड़ी शर्मिन्दगी से कहने लगे— लोग हमसे सवाल करते हैं कि क्या आप बच्चों को यही सिखाते हैं। पूछने वालों को क्या जवाब दें? किसी के माथे पर तो कुछ लिखा नहीं होता। लेकिन ये जो नई नस्ल आई है, हिंदू हो या मुसलमान, इसमें कई तरह का कच्चापन है।
जामिआ के सभी कुलपतियों ने विश्वविद्यालय के विकास को लगातार गति दी और इस मुकाम तक ला दिया कि इसकी एक अंतरराष्ट्रीय पहचान बनी। तरह-तरह के सैंटर, नए-नए विभाग, बहुत तरक़्क़ी की जामिआ ने। और अब देखिए। बिगड़ैल बच्चों के कारण मां-बाप को भी शर्मिंदगी का सा सामना करना पड़ रहा है। यह जो अतीफ़ था, जो मारा गया, राजनीति विभाग में ह्यूमन राइट्स में एम।ए। कर रहा था। वो ह्यूमन राइट्स कितना समझ पाया? शायद उसके ज़ेहन में ह्यूमन की परिभाषा कुछ और ही रही होगी। इंसान-दोस्ती सिखाने वाले अध्यापक क्या करें कि बच्चे का कच्चा दिमाग़ इंसान-दुश्मनी तक न पंहुच पाए।
जामिआ के उसूलों की कहानी देश के हर मज़हब के बच्चे को फिर से सुनानी चाहिए और उनसे एक ऐसी सड़क बनवानी चाहिए जो देशवासियों के दिलों तक पंहुचे, जिसपर मुहब्बत के सीमेंट की गाढ़ी और मोटी परत चढ़ी हो।
9 comments:
यदि जामिया का कोई छात्र आतंकवादी निकलता है तो इसकी जिमेदारी जामिया की कतई नही है लेकिन आतंकवादी को महज इसलिए कोई समर्थन दे कि वो जामिया का छात्र है तो वो ग़लत है
हमारे समाज का एक बड़ा संकट यह है की एक आदमी कोई ढंग का काम करता है और पीछे फालतू खडी पूरी बिरादरी मूंछें ऐंठने लगती है. ठीक इसी तरह एक आदमी अपराध करता है और पूरी बिरादरी की ऎसी-तैसी शुरू हो जाती है. जामिया का अगर इतना गौरवपूर्ण इतिहास न होता तो भी वहाँ कुछ अराजक तत्वों के पहुँच जाने में जामिया का कोई दोष थोड़े ही है. हाँ, यह उसकी व्यवस्था से जुड़े कुछ लोगों की मूढ़ता जरूर हो सकती है, लेकिन इसके लिए किसी संस्थान को दोषी क्यों कहा जाए?
जामिया के बारे में एक विशेष दृष्टिकोण से लिखना कतई न्यायसंगत नहीं है।
एक या कुछ व्यक्तियों के कृत्य के लिए उस मुहल्ले, गांव, कस्बे, जाति, धर्म को दोष देना गलत है। इस तरह तो हम आतंकवाद को बढ़ावा ही देंगे।
जामिया के बारे में अच्छी जानकारी दी।आभार।
"जामिआ में जितने भी रहनुमा हुए उन्होंने प्रेम और मुहब्बत का पाठ पढ़ाया और जामिआ के बारे में ये कहा कि पूरे भारत में यह एकमात्र संस्थान है जहां हर मज़हब का आदर करना सिखाया जाता है।"
अगर यह सच है तो आप जामिया के सारे रहनुमाओं को इतना संकीर्ण बता रहे है मानो उन्होंने जामिया के बाहर के हिन्दुस्तान में कभी कदम ही न रखा हो?
आपने सही कहा...
jo log jaamiya ya Aazam gadh ko galat kah rahe hain, vo apne dimaag ka ilaaj karvaayen....
जामिया की बदनामी आतंकवादी छात्रों के कारण नहीं हुई है। बदनामी का कारण है उपकुलपति की करतूत।
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