जामिया / बाटला शूट आउट मामले में जिस तरह सियासी जंग शुरू हो चुकी है, यह जल्द थमने वाला नही है। अब जिस तरह के सवाल शुरू हो गए है, इसका जवाब देना किसी के वश की बात नही है। मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग सहित तमाम संस्थाएं सड़क पर है। लेकिन उठे सवालों का जवाब कौन देगा। दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार या केन्द्र सरकार या फ़िर मीडिया। इस हमाम में सभी नगें हैं. आख़िर कौन से सवाल हैं जो आने वाले समय में सिरदर्द होंगे। जरा गौर फरमाएं।
- क्या 19 सितंबर, 2008 की मुठभेड़ के सिलसिले में किसी तरह की जाँच का काम शुरू किया गया है या इसकी प्राथमिकी दर्ज की गई है।
- जिस मकान में मुठभेड़ हुई उससे बाहर निकलने का केवल एक रास्ता है। पुलिस की टीम वहाँ मौजूद थी, फिर भी दो लोग भागने में कैसे सफल हो गए.
- मुठभेड़ के मृतकों और गिरफ़्तार संदिग्धों की पुलिस ने धमाके के चश्मदीदों के सामने पहचान परेड क्यों नहीं करवाई है। मृतकों को बिना पहचान परेड के क्यों दफ़्न कर दिया गया. मीडिया और स्थानीय लोगों को भी न तो मृतकों के चेहरे दिखाए और न ही मुठभेड़ की जगह पर जाने दिया गया.
- जिन मामलों में पुलिस के पास कोई जानकारी नहीं थी, उसमें अलग अलग राज्यों की पुलिस को कई अहम मास्टरमाइंड कैसे मिलने लग गए। हर गिरफ़्तारी से पहले तक जिनके बारे में कोई जानकारी पुलिस के पास नहीं होती, उन्हें गिरफ़्तार करने के कुछ ही मिनटों में मास्टर माइंड कैसे कह दिया जाता है.
- अगर पुलिस को मालूम था कि उस घर में चरमपंथी हैं तो पुलिस टीम का नेतृत्व कर रहे एमसी शर्मा बिना बुलैटप्रूफ़ जैकेट के वहाँ क्यों गए।
- अगर पुलिस को पता नहीं था कि वहाँ चरमपंथी हैं तो मुठभेड़ के तुरंत बाद बिना पूछताछ के किस आधार पर पुलिस ने उस घर में रह रहे लोगों को आतंकवादी क़रार दिया।
- अगर जामिया नगर के उस घर (बाटला हाउस, एल-18) में रहनेवाले लोग चरमपंथी थे तो उन्होंने 21 अगस्त, 2008 को अहमदाबाद धमाकों के बाद और दिल्ली धमाकों से पहले अपने बारे में सही निजी जानकारी पुलिस को क्यों उपलब्ध कराई।
- पुलिस ने मृतक संदिग्धों और पुलिस इंस्पेक्टर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जानकारी अभी तक उनके घरवालों को क्यों नहीं दी हैं और क्यों उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया है।
- मृतक पुलिस इंस्पेक्टर एमसी शर्मा के शरीर की एक्सरे रिपोर्ट कहती हैं कि उनके शरीर में कोई गोली नहीं पाई गई. उनपर दागी गई गोलियाँ क्या हुईं. क्या उन्हें घटनास्थल से फॉरेंसिक जाँच के लिए एकत्र किया गया.
2 comments:
बाटला हाउस की छत पर फैले इतने सारे गिद्द
बाटला हाउस की छत पर फैले इतने सारे गिद्द
देखरहा हूं इतने सारे गिद्दों को
पंख फैलाते हुये
झपटते है, मुर्दों के ऊपर
संवेदना विहीन
आरुषी मरी थी
उड़ गये थे ये गिद्धाड़े
फैलाये नेजे समान पंजो को
नोंच नोंच कर खाते रहे थे
उस बच्ची के शव को
अपनी टीआरपी के लिये
करते रहे थे पार्टियां
मनाते रहे थे मौत के जश्न
फ़टे थे बम्ब, मरे थे निर्दोष
उड़ पड़े थे गिद्द
खाने के लिये उन शवों को
पुलिस नपुंसक है, चीखते हुये
उछालते सवालों पर सवाल
क्यों नहीं कुछ करती आंतरिक व्यवस्था?
लहराते माइक को, नेजे की तरह
अब भी ये गिद्द अपने नेजे फैलाये उड़ रहे हैं
नोंच रहे हैं इंस्पेक्टर शर्मा के शव को
उछालते सवालों पर सवाल
देख रहा हूं इनके खून से सने हुये मुंह
बाद में मनायेंगे ये टीआरपी की पार्टिया
मौत के जश्न
पहले जब गिद्द शवों को नोंच कर खाते थे
तब मैं परेशान होता था
सोचता था कि ये आदमी शवों को क्यों नोंच रहे हैं
लेकिन अब एकदम निर्विकार हूं
क्योंकि मुझे मालूम है
ये तो गिद्द है
इनका तो काम ही है
शवों को नोंचना
साभार http://devamopani.blogspot.com/2008/09/blog-post_25.html से
हे ईश्वर, इन्हे क्षमा मत करना.......... ये अच्छी तरह जानते की ये क्या कर रहे हैं.
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