4/03/2009

आख़िर क्यों नहीं मनमोहन सिंह लोक सभा चुनाव लड़ते हैं

भले ही मनमोहन सिंह लोकतंत्र के इस महापर्व के मौके पर मैदान में उतरने से हिचकिचाते हों, लेकिन इसी कांग्रेस में नरसिम्हा राव ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने देश की लगाम थामने के साथ अपने संसदीय क्षेत्र में जीत का परचम लहराया। जीत का अंतर इस कदर था की उनका नाम गिनीज बुक में दर्ज हो गया। १९९१ में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरसिम्हा राव ने जब आन्ध्र प्रदेश के नंदयाल से चुनाव लड़ा तो करीब पॉँच लाख वोट से अपनी जीत दर्ज की। उस वक्त तेलगू देशम पार्टी के नेता एन टी रामाराव ने उनके विरूद्ध कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं करने की घोषणा की थी। तर्क था कि पहली बार दक्षिण का कोई नेता प्रधानमंत्री बन रहा है। इस कारण मार्ग में कोई रूकावट नहीं होनी चाहिए। यही कारण रहा कि इस सीट पर मतदाताओं ने उन्हें इस कदर सर पर उठाया कि उनकी जीत का रिकार्ड गिनीज बुक में शामिल हो गया।
लोकसभा चुनाव के इतिहास की ओर नजर डालें तो कांग्रेस पार्टी से प्रधानमंत्री बननेवालों में राजीव गांधी ऐसे नेता थे जिन्होंने अमेठी से ८३.६७ फीसदी वोट हासिल किया था। इस सीट पर कुल ३.६५.०४१ मतों को पाकर १९८४ में वह देश के प्रधानमंत्री बने। यह दिलचस्प है कि उस वक्त इंदिरा गांधी के ह्त्या के कारण पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी। जनाधार के साथ देश पर शासन करने वालों में इंदिरा गांधी काफी अव्वल रही हैं और जनता में लोकप्रियता की उनकी कोई सीमा न थी। सिर्फ़ एक बार १९७७ के आम चुनाव में उत्तरप्रदेश के रायबरेली से उन्हें राज नारायण के हाथों जबरदस्त मात खानी पडी थें। इस चुनाव में जहाँ राजनारायण को ५२.५२ फीसद वोट हासिल हुए, वहीं इंदिरा गांधी को महज ३६.८९ वोट से संतोष करना पड़ा। १९८० के चुनाव में रायबरेली के लोगों ने इंदिरा गांधी को ५८.२७ फीसद वोटों से संसद तो पहुँचाया लेकिन आँध्रप्रदेश के मेडक से ६७.९३ फीसद वोट पाने और लोगों के प्यार को देखते हुए बाद में रायबरेली की सीट छोड़ दी।
भारतीय लोकतंत्र की दिलचस्प बात यह है की सबसे लंबे समय तक देश पर राज्य करने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उत्तरप्रदेश के इलाहबाद और फूलपुर से चुनाव लड़े थे लेकिन पहले दो चुनाव में उन्हें ४० फीसद वोट से ही संतोष करना पड़ा था। चुनाव आयोग के आंकडे बताते हैं कि देश के पहले आम चुनाव में इलाहाबाद में उन्हें महज ३८.७३ वोट हासिल हुए थे, वहीं १९५७ में फूलपुर लोकसभा सीट से लोगों ने सिर्फ़ ३६.८७ वोट उनके पक्ष में दिया था, लेकिन आश्चर्य की बात है कि जब १९६२ के चुनाव में राममनोहर लोहिया सरकार की नीतियों और जवाहरलाल नेहरू के कामकाज ke विरोध के लिए आमने-सामने हुए तो जनता ने उनके पक्ष में ६१.६२ फीसदी मतदान किया। इस चुनाव में राममनोहर लोहिया को महज २८.१७ फीसदी वोट मिले थे।
जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद बने अंतरिम प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा १९५७ और १९६२ में लोकसभा सदस्य बने थे और १९६२ के चुनाव में गुजरात के सबर कांता से ५१.३४ फीसद वोट के साथ जीत दर्ज की थी। १९६२ के आम चुनाव में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को मुगलसराय के लोगों ने १,२९,४६८ वोटों के साथ करीब ५१.३४ फीसदी वोट देकर अपना प्रतिनिधि बनाया था.

2 comments:

अबरार अहमद said...

लडने की जरूरत क्या है जब वैसे ही प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल रही है तो।

अविनाश वाचस्पति said...

आज के दैनिक हरिभूमि समाचार पत्र में पेज 4 पर 4 ब्‍लॉग्‍ा पोस्‍टों में से एक पोस्‍ट यह भी है। विनीत भाई आज का हरिभूमि या तो इंटरनेट पर या प्रिंट संस्‍करण ले सकते हैं। सूचनार्थ।