5/06/2009

लोग सत्ता पा रहे उनके नाम पर

लोग सत्ता पा रहे उनके नाम पर
एक ऐसा शख्स जिनके नाम पर दशकों से वोटरों को लुभाया जा रहा है। जिनके नाम पर राजनीति की दशा व दिशा तय हो रही है, जिनके नाम पर विधानसभा से लेकर लोकसभा तक के चुनाव में जीत हासिल की जाती है। लेकिन वह खुद कभी लोस का चुनाव नहीं जीत पाए। देश के प्रथम कानून मंत्री डॉ। भीमराव रामजी अंबेडकर ने पहले लोस चुनाव में बंबई सिटी (उत्तरी) से शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी।
जिंदगी भर सवर्णों के ताने सुनने वाले अंबेडकर ने देश का कानून लिखकर इतिहास तो बनाया, लेकिन आम मतदाताओं के बीच अपना सिक्का नहीं जमा सके। जानकारों का मानना है कि वे पूरी जिंदगी लोगों का ताना सुनते रहे। जब संविधान बन रहा था तो नेहरू जी उन्हें समिति में शामिल नहीं कर रहे थे लेकिन गांधीजी की जिद पर उन्हें संविधान बनाने वाली समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया था। हिंदू कोड बिल के पास न होने पर जब उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और ’52 में हुए पहले आम चुनाव में बंबई सिटी (उत्तरी) से खड़े हुए तो वहां के लोगों ने उन्हें सिरे से ठुकरा दिया। कांग्रेस के विट्ठल बालाकृष्णन गाडगिल ने उस वक्त 20।83 फीसद वोट हासिल कर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था। अंबेडकर चौथे स्थान पर रहे और उन्हें महज 17.26 फीसद वोट मिला। ’57 के चुनाव तक वह जीवित नहीं रह पाए, इस कारण फिर अपना भाग्य अजमा नहीं पाए। लोकसभा चुनाव में हार के बाद वे राज्यसभा के लिए चुने गए और जीवनपर्यंंत रहे। हालांकि ऐसी बात नहीं है कि लोगों के बीच अपने वक्त भी वह लोकप्रिय नहीं थे। सन ’36 में उन्होंने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की थी। केंद्रीय विधानसभा के लिए ’37 में हुए चुनाव में उनकी पार्टी ने 15 सीटों पर जीत हासिल की थी।
अंबेडकर को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी अपने ब्लॉग पर लिखते हैं ‘‘आजादी के बाद बनी पहली सरकार में पंडित जवाहरलाल नेहरू केवल कांग्रेसियों को ही रखना चाहते थे लेकिन गांधीजी के कहने पर उन्होंने अंबेडकर को शामिल तो कर लिया पर जब चुनाव हुए तो कांग्रेस ने ऐसी तिकड़म भिड़ाई कि वह जीत नहीं पाए। ’’ जानकारों का मानना है कि ’54 आते-आते सवर्णाें द्वारा लगातार प्रताड़ित किए जाने के कारण वे डिप्रेशन के शिकार हो गए थे।

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