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कुछ भी सोचने के लिए
कुछ भी मानने के लिए
कुछ भी करने के लिए
कुछ भी नहीं करने के लिए
आखिर देश स्वतंत्र हो चुका है
जी, आज हम स्वतंत्र हैं
कभी भी जागने के लिए
कभी भी सोने के लिए
कभी भी खाने के लिए
कभी भी पीने के लिए
आखिर देश स्वतंत्र हो चुका है
जी, आज हम स्वतंत्र हैं
किसी से प्यार का नाटक करने के लिए
किसी को झांसे में रख काम निकालने के लिए
किसी को दिन-दहाड़े धोखा देने के लिए
किसी के साथ फालतू का झगडा करने के लिए
आखिर देश स्वतंत्र हो चुका है
जी, आज हम स्वतंत्र हैं
कभी भी झूठ बोलने के लिए
कभी भी किसी का टांग खींचने के लिए
कभी भी किसी को जलील करने के लिए
कभी भी किसी को जिन्दा मरते देखने के लिए
आखिर देश स्वतंत्र हो चुका है
जी, आज हम स्वतंत्र हैं
किसी भी परम्पराओं को नहीं मानने के लिए
किसी भी रीति-रिवाजों को ढकोसला कहने कि लिए
किसी भी पुरुष का पुरुष से और स्त्री का स्त्री से सम्बन्ध बनाने के लिए
किसी भी संस्कार तो न मानने या न पालन न करने के लिए
आखिर देश स्वतंत्र हो चुका है
जी, आज हम स्वतंत्र हैं
जितना बिगड़ सकते हैं बिगड़ने के लिए
जितना कमीना हो सकते हैं कमीना बनने के लिए
जितनी अश्लीलता हो सकती है उतना अश्लील होने के लिए
जितने के साथ हमबिस्तर हो सकते हैं उतने के साथ हमबिस्तर होने के लिए
आखिर देश स्वतंत्र हो चुका है
जी, हम स्वतंत्र हैं, देश स्वतंत्र है
क्योंकि यह स्वतंत्रता मिली है
जीवन-मूल्यों, आदर्शों, नैतिकताओं को बलि चढाने के लिए
न कि उसे और पुख्ता करने के लिए
जैसा हमारे समाज में हो रहा है
और इसका परिणाम देश भुगत रहा है.
5 comments:
स्वाधीनता की बुखार अब लगती नहीं....इसी वजह से नहीं कहता , जी आज हम स्वतंत्र हैं
बहुत बढिया...लाजवाब...
बहुत से सच को उजागर करती रचना ....बहुत खूब लिखा आपने
vakai! ham aaj swatantr hain.
ek sashakt rachna.
bahut khoob
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