ऐसे दौर में जहां सगे भी जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ नहीं देते हैं, वहीं ये मूक वृक्ष जन्म से लेकर मृत्यु तक किसी न किसी रूप में हमेशा साथ देते हैं और बदले में कुछ नहीं मांगते। ऐसे में उनकी क्यों न रक्षा की जाए।
औघोगिकरण के लिए जिस तरह बहुमूल्य व विशष्टि पेड़ काटे जा रहे हैं, उनको हर हाल में रोकना होगा। जिस अनुपात में वृक्ष कट रहे हैं, उसी अनुपात में उन्हें लगाकर संरक्षित और सुरक्षित किया जाना चाहिए। यही वजह है कि उन्होंने पेड़ों को धर्म से जोड़ दिया। रक्षाबंधन आने पर सुनीति ने कई महिलाओं को इकट्ठा कर पेड़ों को राखी बांधकर उनकी रक्षा करने का संकल्प लिया।
सुनीति बताती हैं, ‘जशपुर की पनचक्की नर्सरी में लगी प्राइवेट जमीन पर पांच विशष्टि वृक्ष लगे थे। जमीन का मालिक उन्हें काटकर वहां दुकान बनाना चाहता था। उसने इसे काटने का आवेदन डीएम के पास दे रखा था। जब मुझे यह बात मालूम हुई तो मैंने निश्चय किया कि इन्हें हर हालत में बचाना है। रक्षाबंधन के मौके पर आसपास की महिलाओं को साथ ले विधिवत पूजा कर उनमें राखी बांधी दी। शाम तक देखा-देखी में आसपास की कई महिलाओं ने भी उन वृक्षों पर ढेर सारी राखियां बांध दीं। इसके बाद भूस्वामी ने उन पेड़ों को काटने का विचार छोड़ दिया। इस तरह वृक्षों को बचाने के लिए रक्षासूत्र बांधने के आंदोलन की शुरूआत हुई।’
इस सफलता से प्रभावित होकर सुनीति ने जशपुर वनमंडल की सहायता से प्रत्येक गांव में एक या दो वरिष्ठ वृक्षों का चयन किया। साथ ही राज्य में गठित ईको क्लब, वन सुरक्षा समितियों, महिला समूहों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को अपने आंदोलन में शामिल होने का आग्रह किया। इनके सहयोग से अप्रत्याशित परिणाम सामने आए। भिलाई शहर व आसपास के इलाकों के लोग नीम के पेड़ की डालियां तोड़कर ले जाते थे जिससे इनमें बढ़त नहीं हो पाती थी। इन पेड़ों को राखियां बांधने के बाद लोगों ने उसके पत्ते तोड़ने बंद कर दिए।
शुरूआती दौर में पेड़ों को भाई मानने की बात को लेकर लोगों के मजाक का पात्र बनने वाली सुनीति के लगन व अथक प्रयास का ही परिणाम था कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सभी राज्यों को वृक्ष रक्षा सूत्र कार्यक्रम चलाने का निर्देश दिया। उनकी अगुवाई में शुरू हुआ यह आंदोलन छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखंड, उत्तरांचल, राजस्थान, बिहार और उड़ीसा में फैल चुका है। उनके आंदोलन से प्रभावित होकर छत्तीसगढ़ राज्य वन विभाग राज्य में बम्लेश्वरी देवी मंदिर, डोंगरगढ़, महामाया मंदिर, अंबिकापुर सहित अन्य धार्मिक स्थलों पर पौध प्रसाद की परंपरा की शुरूआत की है। इसके तहत मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में पौधे दिए जाते हैं।
सुनीति यादव का कहना है कि ऐसे दौर में जहां सगे भी जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ नहीं देते हैं, वहीं ये मूक वृक्ष जन्म से लेकर मृत्यु तक किसी न किसी रूप में हमेशा साथ देते हैं और बदले में कुछ नहीं मांगते। ऐसे में उनकी क्यों न रक्षा की जाए। ऐसी ही सोच उनके आंदोलन से जुड़ी हर महिलाओं की है, तभी तो इस आंदोलन को छत्तीसगढ़ के लोग ‘चिपको आंदोलन’ का दूसरा रूप मानते हैं।
2 comments:
सुनीति यादव के कार्यों से परिचय कराने का आभार..साधुवाद!!
Suniti jee ka ye upkram sach much hee prashasaneey hai aur anukaraneey bhee.
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