एक तरफ शिक्षा को महंगा किया जा रहा है और तीस करोड़ लोगों की जरूरत के मुताबिक कानून बनाए जा रहे हैं और बात सादगी की हो रही है, तो यह पूरी तरह विरोधाभास है। इससे जनहित तो नहीं सधेगा, राजनीति सध सकती है। स्वस्थ स्पर्धा हो और केवल राजनीतिक कारणों से सादगी को अपनाया जाए, यह गलत है। साधना और शुचिता का राजनीतिक जीवन में आज भी महत्व है। ...गोविंदाचार्य,वरिष्ठ चिंतक
सादगी तर्कसंगत और प्रशंसनीय है, लेकिन कुछ लोगों की सादगी आम लोगों को महंगी पड़ जाती है और सामान्य लोगों के लिए कष्टकारी हो जाती है। ऐसे में सामान्य लोगों को कष्ट से बचाने के लिए सादगी का परित्याग किया जाना चाहिए। आमजन को उनकी सादगी महंगी पड़ रही है जिन्हें विशेष सुरक्षा मिली है। वह अपनी सादगी से आम आदमी को कष्ट पहुंचाते हैं। प्रशासन को चाहिए कि सादा, सरल और छोटा कारगर कदम कैसे हो, इस बार अमल किया जाए।
संथानम कमीशन ने इस मामले में काफी कुछ कहा है कि सस्ता और सुलभ न्याय कैसे हो, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।एक तरफ शिक्षा को महंगा किया जा रहा है, तीस करोड़ लोगों की जरूरत के मुताबिक कानून बनाया जा रहा है और बात सादगी की हो रही है, तो यह पूरी तरह विरोधाभास है। इससे जनहित तो नहीं सधेगा, राजनीति भले सध सकती है। आप जनमानस के साथ जाएं तो बात बने।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज भी त्याग व सादगी का वैसा ही महत्व है। आज भी बनारस का विधायक पैदल ही घूमता है, अंगरक्षक तक नहीं है। इंदौर का लक्ष्मण और आंध्र प्रदेश का जयप्रकाश बिना खर्च किए जनता के बदौलत प्रतिनिधि चुना जाता है। आज भी उनकी सादगी काबिले-तारीफ है।स्वस्थ स्पर्धा हो और केवल राजनीतिक कारणों से सादगी को अपनाया जाए, यह गलत है। साधना और शुचिता का राजनीतिक जीवन में आज भी महत्व है, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक पैंतरेबाजी गलत है। पाखंड इस बात का प्रमाण है कि समाज में विवेक जिंदा है और गुणों का महत्व है।
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