गिद्ध लुप्त होने के बाद अब चमगादड़ों को खोजे नही मिलेगा। चमगादड़ों के सौदागर गांव-गांव घूमकर इन्हें पकड़कर बेच रहे हैं और ग्राहक नहीं मिलने पर इनकी हड्डियों और तेल का महंगा सौदा कर रहे हैं। एक छोटा चमगादड़ भी सौ रुपये प्रति की दर से बिकता है और अगर बड़ा 'बादुर' मिल गया तो सौदा पांच सौ रुपये प्रति में तय होता है। यह हाल है बिहार के मधेपुरा के इलाके का।
पूरे इलाके में इन चमगादड़ों को पकड़ने के लिए आमतौर पर ताड़ के पेड़ों पर चढ़ने वाले एक जाति विशेष के परंपरागत लोगों को लगाया गया है। ये ताड़ के पेड़ पर चढ़कर ताड़ी उतारने के साथ-साथ जाल लेकर चमगादड़ों को भी फंसाकर नीचे उतरते हैं। चमगादड़ों को फंसाने के बाद अगर ग्राहक तैयार मिला तो जिंदा ही बेच डालते हैं लेकिन अगर ग्राहक तत्काल नहीं मिला तो फिर इन्हें मार डालते हैं। ताड़ के पेड़ पर से चमगादड़ पकड़कर इनको मारकर तेल और हड्डी निकालकर रखते हैं तथा मांस को खा जाते हैं। तेल जब ढ़ाई सौ ग्राम से ज्यादा जमा हो जाता है तो फिर पांच सौ रुपये किलो तक बेच देते हैं। हड्डी भी जमाकर रखते हैं और ग्राहक भी मरने वालों के गावों में ही आते हैं। इसके ग्राहक बाहर देश से आते हैं। एक सौ रुपये में चमगुदड़ी और पांच सौ रुपये में बादुर के खरीददार मिल जाते हैं। चमगादड़ पकड़ने के लिए ये जाल के साथ ताड़ पर चढ़ते हैं और सूखे पत्ते से सटाकर रखते हैं। ज्योंहित खड़-खड़ाहट की आवाज पर चमगादड़ भागकर उड़ते हैं, वे जाल में फंसते चले जाते हैं। किस ताड़ के पेड़ पर चमगादड़ है, इसके लिए पेड़ के नीचे सूक्ष्मता से निरीक्षण किया जाता है और अगर इनका मल दिख गया तो फिर पेड़ पर चढ़कर इनका काम तमाम किया जाता है। चमगादड़ के तेल से दर्द निवारक दवा बनाई जाती है जबकि हड्डियों को पीसकर शक्तिवर्द्धक दवा बनती है।
हालाँकि चमगादड़ के तेल या हड्डी से कोई एलोपैथिक दवा तो नहीं बनती है लेकिन झारखंड के आदिवासी गांवों में ऐसी मान्यता है कि चमगादड़ का रक्त और मांस अस्थमा रोग में लाभकारी होती है। यहाँ के लोगों का कहना है कि चमगादड़ों को यहां से बांग्लादेश के मार्फत इंडोनेशिया ले जाकर महंगे दामों में बेचा जाता है। एक छोटे चमगादड़ की कीमत वहां तीन पौंड तक होती है। इंडोनेशिया में परंपरागत रूप से बंद का ब्रेन, भालू का पांव जैसे अजीबोगरीब वस्तुओं को भी लोग खाते हैं। स्तनपायी चमगादड़ के विषय में यहां यह मान्यता है कि इसका हृदय खाने से दमा रोग ठीक होता है।
3 comments:
हाँ गिद्धों के बारे मैं तो सुना था | अब चमगादड़ की बारी आ गई |
हम जिस तरह प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं, आने वाली पीढियाँ इसका खामियाजा भुगतेगी |
बहुत दुखद बात है। मनुष्य के लालच का कोई अन्त नहीं। लगता है वह संसार के हर प्राणी को खत्म करके ही रहेगा।
घुघूती बासूती
विनीत भाई काश आदमी का भी तेल निकाल कर कोई दवा बन सकती होती तो ऐसे कमीनों को पकड़वा कर पूंजीपति तेल निकलवा कर अपने घुटनों में मल लिया करते। ये राक्षस हैं जो एक दिन सारे प्राणियों को खा जाएंगे अपने लालच में आकर....
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