नए संचार माध्यमों के जरिए पाठक वर्ग काफी हद तक प्रभावित हुआ है लेकिन तमाम भारतीय भाषाओं की रचनाएं हिंदी पाठकों के द्वारा पढ़ी जा रही हैं। करीब 24 भारतीय भाषाओं के साथ लोक भाषाओं की एक इकाई के तौर पर छपने वाली पत्रिका के जरिए पाठक आम जनमानस से रूबरू होता है। जब दो दशक पहले नए संचार माध्यम सामने आ रहे थे तो काफी हल्ला मचा था कि लिखित शब्दों की दुनिया खत्म हो जाएगी। लेकिन हुआ इसका उलट, पाठक और बढ़ गए। कई नए प्रकाशक सामने आए। लिखित शब्दों की एक अलग दुनिया है। हालांकि यह और बात है कि नए संचार माध्यमों ने पाठकों का समय चुरा लिया है लेकिन पढ़ने की प्यास अब भी बुझी नहीं है।
नए संचार माध्यमों ने पाठकों का समय चुरा लिया है लेकिन पढ़ने की प्यास अब भी बुझी नहीं है।
तमाम साहित्यिक पत्रिकाएं निकल रही हैं। उनमें से पचास तो ऐसी हैं ही जो बेहतर सामग्री पाठकों को मुहैया करा रही हैं। जहां तक ई-पत्रिकाओं की बात है तो कंप्यूटर और इंटरनेट की पहुंच कितने फीसद लोगों तक है, इसके आंकड़े ढूंढने होंगे। हालांकि एक पाठक वर्ग है लेकिन देश के अधिकतर पाठक अभी इससे दूर ही हैं। पिछले कुछ समय से स्त्री, दलित और आदिवासी से संबंधित विमर्श साहित्य जगत में जारी है। इससे संबंधित विमर्श न सिर्फ हिंदी में चल रहा है बल्मि तमाम भारतीय भाषाओं में रचनाएं लिखी जा रही हैं। आदिवासियों के विस्थापन का लेकर काफी सशक्त रचनाएं आ रही हैं। करीब सौ से भी अधिक जनजातीय भाषाओं की रचनाएं हिंदी में पढ़ी जा रही हैं और इनका जबरदस्त पाठक वर्ग है।
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