दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाले परिवार के सदस्य शायद ही कभी सोच सकते हैं कि उनके घर कि बेटी सोना उगलेगी। वह भी अपने मुक्कों के दम पर। वह भी अपने देश में नहीं सीमा पार वियतनाम में। वह भी तब जब उसकी टीम में चार बार कि विश्व चैम्पियन मेरी कॉम, एल। सरिता देवी और एन. उषा जैसी स्तर मुक्केबाज शामिल हों। हालांकि इन सपने जैसी बातों को हकीकत में लाने वाली लड़की है कविता गोयत।
पिछले दिनों वियतनाम में संपन्न तीसरी एशियन महिला इनडोर चैम्पियन में स्वर्ण पदक विजेता कविता मूल रूप से हरियाणा के हंसी ब्लाक के गांव सीसर खरबला की है। हिसार के कैमरी रोड स्थित मनोहर कालोनी वासी साई की बाक्सर कविता के इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी ऐसी लड़की की है, जो अपने भाई की जिद के कारण अपने मुक्कों का लोहा पूरी दुनिया से मनवा सकी।
करीब पांच साल पहले तक वह अपने पिता के कामों में हाथ बटाती थी, वहीं घरों के कामकाज में मां के साथ सरीक होती थी। लेकिन एक दिन जब अपने भाई पवन के साथ हिसार के ‘साई सेंटर’ में गई तो उसके दिमाग के किसी कोने में बैठा फितूर जग गया। भाई को रिंग में मुक्केबाजी करते देख वह भी इस खेल की दीवानी हो गई।जिस घर का पूरा परिवार पिता आ॓मप्रकाश की दिहाड़ी पर चलता हो, वहां बेटी की जिद कैसे मान ली जाती। लेकिन जब हौसले बुलंद हों तो लक्ष्य पाने में कोई समस्या रूकावट नहीं बनती। यही कारण था की आखिरकार कविता को उसके पिता ने साई हॉस्टल भेज दिया। जहां कोच जसवंत और राज सिंह ने उसके हुनर को पहचान कर मुक्केबाजियों की बारीकियों से अवगत कराया।
उनकी मां सुमित्रा बताती हैं कि छोटा बेटा पवन बॉक्सिंग में कई पदक जीत चुका है। उसने कविता को बॉक्सिंग के रिंग में उतारने की जिद पकड़ रखी थी। वह पहले इस पक्ष में नहीं थी लेकिन धार्मिक गुरू राधास्वामी के परम शिष्य विमल प्रकाश की सलाह पर उसे इस खेल में महारत हासिल करने के लिए भेज दिया।अभावों और गरीबी में बचपन बिताने के लिए मजबूर रहने वाली कविता का विजयी अभियान 2003 से शुरू हुआ। पिछले साल उसने आगरा में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। इस चैंपियनशिप में मेरी कॉम ने स्वर्ण, एल। सरिता देवी ने और एन। उषा ने रजत और छोटू लौरा ने कांस्य पदक जीता था।
अपने समय में कबड्डी के बेहतरीन खिलाड़ी रहे आ॓मप्रकाश की पुत्री कविता का जन्म 15 अगस्त, 1988 को हुआ है। उसने जाट कॉलेज, हिसार से स्नातक की डिग्री हासिल की है। हालांकि इन दिनों ट्रेनिंग में व्यस्त होने के कारण स्नातकोत्तर की डिग्री नहीं ले पा रही है। पिछले दिनों वियतनाम में 64 किलोग्राम भार वर्ग में अपनी प्रतिद्वंद्वी कजाकिस्तान की खासेनोवा सौदा को 8:4 से शिकस्त देने वाली कविता के कोच जसवंत सिंह का मानना है की वह रिंग में दिमाग से लड़ती है। उसकी इच्छा शक्ति जबरदस्त रूप से मजबूत है। यही कारण है कि उसने सही तरीके से अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान दिया तो वह दिन दूर नहीं जब 2012 में पदक जीत कर देश का नाम रोशन कर सकती है।
1 comment:
अच्छा लगता है यूं जीवट को सफल होते देख
Post a Comment