‘डाल दी मैंने जल-थल में नय्या, जागना हो तो जागो खेवय्या, जागना हो तो जागो खेवय्या, देवता तुम हो मेरा सहारा, मैंने थामा है दामन तुम्हारा...’ यह गीत सुनते ही हर मन कहीं खो जाता था। जब कहीं दूर बजता था, ‘मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही...’ या फिर ‘कभी तन्हाईयों में हमारी याद आएगी...’ तो लगता था ऐसा जैसे किसी का प्यार किसी तन की आस में विरह की गीत गा रही है। गाने के ये बोल न तो अब सुनने को मिलते हैं और न ही बोलों की पीछे की आवाज को ही याद करते हैं। इन आवाज के पीछे वही दर्द महसूस होता है जो राजस्थान के रेतीले इलाके में आनेवाली आंधियों की हवाओं की होती है। आखिर इस आवाज के पीछे राजस्थान का नवलगढ़ और झुंझनूं जो था।
कशिश आवाज की मल्लिका मुबारक बेगम को संगीत के संस्कार जन्मजात मिले थे क्योंकि उनके पिता को तबला बजाने का शौक था। उस्ताद थिरकवा खान साहब के वो शार्गिद थे। चालीस के दशक में वह अपने अब्बा के साथ मुंबई आ गईं। वह वो दौर था जब मुबारक बेगम बड़े चाव से सुरैया और नूरजहां के गीत गाती थीं। मुंबई में किराना घराने के उस्ताद रियाजुद्दीन खान और उस्ताद समद खान साहब की शार्गिदी में गायन की तालीम हासिल की। मेहनत रंग लाई। कुछ दिनों के बाद ऑल इंडिया रेडियो पर भी गाना गाने के मौके मिलने लगे।
कभी सफलता की बुलंदियां उनके चरण चूम रही थीं लेकिन बदलते वक्त ने उस आवाज की मल्लिका को भुला दिया जिसे सिने जगत ने धोखा भी दिया था
पहली बार याकूब की फिल्म ‘आइए’ के लिए ‘मोहे आने लगी अंगड़ाई...’ गीत में अपना सुर दिया जिसके गीतकार थे शौकत हैदर देहलवी माने ‘नौशाद’। पचास के दशक में उनका सितारा चमक रहा था और फिर ‘मेरा भोला बलम’, ‘देवता तुम मेरा सहारा’, ‘महलों में रहने वाले’, ‘जल जल के मरूं’, ‘क्या खबर थी यूं तमन्ना’ गीतों के जरिए अपनी पहचान बना ली। 1959 में आई फिल्म ‘दायरा’ से लेकर 1961 में आई फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ और जिसका टाइटिल सांग ‘कभी तन्हाईयों में यूं हमारी याद आएगी...’ ने उनकी जिंदगी पलट दी और वह एक ऐसे मुकाम पर खड़ी थी जहां कोई दूसरा न था। इसी दशक में ‘मुझको गले लगा लो’, ‘नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले’, ‘मेरे आंसुओं पे न मुस्कराना’ जैसे मशहूर गीतों को आवाज दी।
हालांकि इंसाफ हर किसी के साथ नहीं होता वैसा ही मुबारक बेगम के साथ हुआ। माना जाता है कि फिल्म ‘जब-जब फूल खिले ’ के गीत ‘परदेशियों से ना अंखिया मिलाना’ आ॓र फिल्म ‘काजल’ के गीत ‘अगर मुझे न मिले तुम’ को इन्होंने ही गाया था लेकिन बाजार में जब इसके कैसेट आए तो इनकी आवाज नदारद थी। आखिरकार मोह तो भंग होनी ही थी और 1980 में बनी फिल्म ‘रामू तो दीवाना है’ में ‘सांवरिया तेरी याद में’ गीत फिल्म में उनका आखिर गीत रहा और वह फिर उनकी आवाज स्टेज शो तक सिमट गई या फिर यदा-कदा किसी ने याद कर लिया तो गा दिया।
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