4/13/2010

स्पेस है खुला

90 के शुरू में लोगों के आईडी और पासवर्ड ही इंटरनेट की दुनिया में घूमते रहते थे लेकिन अब इस लिस्ट में सीवी, एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड के अलावा उनका पिन नंबर भी ई-मेल बॉक्स में शामिल हो गया है। साइबर क्रिमिनल पैसों के लिए कोई भी जानकारी दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचाने की क्षमता रखते हैं...
जिस तरह से दुनिया एक गांव के तौर पर सामने आ रही है, उसी तरह साइबर क्राइम का दायरा भी बढ़ता जा रहा है। आपके मेल के इनबॉक्स में हर रोज जंक मेलों की बाढ़ मिल रही है जिसमें लाखों डॉलर जीतने या फिर अरबों की संपत्ति का वारिस बनने के लिए आमंत्रित किया जाता है। यह बात और है कि आपमें से कई लोग इन मेल के शिकार बने होंगे या फिर सर्तकता बरती हुई होगी तो बच गए होंगे। इतना ही नहीं साइबर क्रिमिनलों का ध्यान उन सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी है जिससे आप जुड़े हुए हैं। गौरतलब है कि दुनिया के जिन देशों में सरकार जागी है वहां साइबर क्राइम एक्सपट्र्स ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स मसलन फेसबुक, ट्विटर, माई स्पेस आदि को कहा है कि वे उनका साथ दे जिससे साइबर क्राइम को रोका जा सके।
हर दिन पूरी दुनिया के लाखों लोग इन सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के सदस्य बन रहे हैं। "एओएल' जैसे साइट्स के अलावा विभिन्न इंस्टैंट मैसेज और चैटरूम में साइबर क्रिमिनल अश्लील बातों को तवज्जो देते आए हैं। यही कारण है कि ट्विटर और फेसबुक ने मिलकर इससे जुड़े एक्सपट्र्स को सहायता देना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों यह बात भी सामने आई है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई के एजेंटों ने कई नकली सदस्यों को नाकाब किया है और चैटिंग के दौरान पता लगाया कि अपराध में शामिल लोगों के कौन-कौन दोस्त हैं और वे कहां से चैटिंग करते हैं। साइबर क्रिमिनल अब अपराध के नए रास्ते तलाश रहे हैं। विलायंट टेक्नोलॉजी के निदेशक डॉ। रमा सुब्राहृमण्यम का मानना है कि आने वाले समय में साइबर क्राइम महज एक मजाक नहीं रहेगा। इंटरनेट की दुनिया के इस खेल में अब आतंकवादी, सफेदपोश, हैकर्स आदि भी शामिल हो गए हैं। इसकी दुनिया पूरी तरह खुली हुई है। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ग्लोबल अंडरग्राउंड साइबर क्रिमिनल कम्यूनिटी का दिमाग भी ऐसा कुछ करने के लिए मचलता रहता है जो आम लोगों की पकड़ में न आए। 90 के उत्तरार्ध में लोगों के आईडी और पासवर्ड ही इंटरनेट की दुनिया में घूमते रहते थे लेकिन अब इस लिस्ट में सीवी, एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड के अलावा उनका पिन नंबर भी ई-मेल बॉक्स में शामिल हो गया है। साइबर क्रिमिनल रुपये के लिए कोई भी जानकारी दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचाने की क्षमता रखते हैं।
शोध बताते हैं कि 2008-09 में व्यापक तौर पर अवैध तरीके से इंटरनेट के जरिए रुपये कमाने की बात सामने आई। खासतौर से ड्रग से संबंधित तमाम अवैध कारोबार सबसे ज्यादा इंटरनेट के जरिए ही हुए। ताज्जुब की बात है कि जनवरी 2010 में न्यूयार्क के एक बैंक की साइट को हैकर्स ने हैक कर लिया और इसके सुरक्षा तंत्र को तोड़ते हुए करीब 8,300 ग्राहकों के खाते चुरा लिए। इंटरनेट के शोध बताते हैं कि फंड उगाही के मामले में साइबर क्रिमिनल पहले नंबर पर है और सबसे ज्यादा उगाही पॉर्न इंडस्ट्री कर रही है।
पिछले दिनों एक वेबसाइट द्वारा कराए गए रिसर्च में यह बात सामने आई कि दुनिया में जनवरी, 2010 तक करीब 25 हजार लोगों के क्रेडिट कार्ड के पासवर्ड साइबर क्रिमिनल ने हैक कर लिए जिससे ग्राहकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा और बाद में समझौता करने के बाद पासवर्ड हासिल हुए। जाहिर सी बात है कि इंटरनेट के जरिए हैकर्स ने लोगों के सामने विभिन्न जानकारियां उपलब्ध कराई हैं जिससे लोगों को जागरूक होने के लिए मजबूर होना पड़ा है।समाज में अपराध होने पर पीड़ित सहायता के लिए लोगों को पुकारता है लेकिन साइबर क्राइम से पीड़ित लोग इस कदर जागरूक नहीं हैं कि वे किसी से सहायता मांग सकें। ऑस्ट्रेलिया से लेकर दक्षिणी अमेरिका तक, एशिया से लेकर अफ्रीका तक, कहीं भी साइबर क्राइम की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती है। हालांकि पीड़ित विभिन्न कंपनियां इसलिए मामले को दर्ज कराने के लिए मजबूर होती हैं क्योंकि कहीं न कहीं उन्हें लगता है कि ग्राहकों की तमाम जानकारियों को इंटरनेट पर उपलब्ध कराकर उन्होंने हैकर्स को जानबूझकर आमंत्रित किया है।
फिलहाल कई देशों में साइबर क्राइम से निपटने के लिए संबंधित एक्सपर्ट से सलाह ली जा रही है और इसके लिए स्पेशल सेल का गठन किया जा रहा है। डाटा लीक प्रोविजन सिस्टम को सही करना होगा और डिजिटल फॉरेनसिक लैब के जरिए अपराधी की पहचान किया जाना ही एकमात्र विकल्प फिलहाल दिखता है।
(यह आलेख राष्ट्रीय सहारा के रविवार परिशिष्ट उमंग में प्रकाशित हुआ है )

No comments: