‘ऐ मेरे हम सफर, ले रोक अपनी नजर, ना देख इस कदर, ये दिल है बड़ा बेसबर...’ इस गाने के एक-एक बोल कहीं न कहीं अपने से लगते हैं। और फिर आगे की लाइन है, ‘चांद तारों से पूछ ले, या किनारों से पूछ ले, दिल के मारों से पूछ ले, क्या हो रहा है असर’। तो मन और दिल की वेदना तुरंत दिलो-दिमाग पर छाने लगती है और तन्हाईयों में बात सामने आने लगती है कि तभी, ‘मुस्कुराती है चांदनी, छा जाती है खामोशी, गुनगुनाती है जिंदगी, ऐसे में हो कैसे गुजर’, की बोल सुनाई दे जाती है। फिर तो कुछ बचता ही नहीं, हर जवां दिल मचल उठता है। अंतर्द्वद यह जानने के लिए उत्सुक होता है कि आखिर यह आवाज किसकी है।
फ़िल्मी करियर में अलग-अलग किरदार निभाकर अभिनय का डंका बजानेवाली नूतन गीत और ग़ज़ल भी लिखती थीं। अपनी माँ द्वारा निर्देशित फिल्म 'छबीली' के दो गानों में अपनी आवाज भी दी थी
यह बात और है कि यह आवाज इस गाने के अलावा किसी और गाने में शायद नहीं है। हां, याद आया ए क और गाना। ‘लहरों पे लहर, उल्फत है जवां...’ में भी तो यह आवाज है लेकिन इसमें हेमंत कुमार भी साथ हैं। आप क्या सोच रहे हैं यह आवाज सुनकर, गीता दत्त गा रही हैं। अरे नहीं, यह आवाज गीता दत्त की नहीं है बल्कि अभिनेत्री नूतन की है। चौंक गए ना। ये दोनों गीत नूतन की मां शोभना समर्थ द्वारा निर्देशित फिल्म छबीली का है जो 1960 में रिलीज हुई थी। इस गीत को संगीतबद्ध किया था स्नेहल भाटकर ने।
आज के जमाने में कई अभिनेता और अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने कई फिल्मों में गाने भी गाये हैं। लेकिन 50-60 के दशक में अभिनय भी करना और गीत भी गाना हर किसी के लिए चौंकाने वाली बात थी। संजीदा और भावनात्मक अभिनय से लगभग चार दशक तक लोगों के दिलों पर राज करने वाली नूतन के बारे में काफी कम लोगों को पता है कि वह अच्छा गाती थीं। हालांकि यह और बात है कि पूरी फिल्मी करियर में उन्होंने सिर्फ दो ही गाने गाए । और तो और नूतन की प्रतिभा केवल अभिनय तक ही सीमित नहीं थी वह गीत और गजल लिखने में भी काफी दिलचस्पी लिया करती थीं। लेकिन उसी दौर में गीता दत्त भी हुई थीं जिनकी आवाज नूतन से मिलती थीं। यही कारण था कि नूतन पर फिल्माए गए अधिकतर गानों में आवाज गीता दत्त ने दी है।
‘सुजाता’, ‘बंदिनी’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘सीमा’, ‘सरस्वती चंद्र’ और ‘मिलन’ जैसी फिल्मों में अपने उत्कृष्ट अभिनय से लोहा मनवानी वाली नूतन असीम प्रतिभा की धनी थीं। चार जून 1936 को मुंबई में जन्मी नूतन का मूल नाम नूतन समर्थ था और अभिनय की कला विरासत में मिली। उनकी मां शोभना समर्थ जानी मानी फिल्म अभिनेत्री थीं। फिल्मी माहौल घर में होने से जाहिर-सी बात थी कि नूतन को भी अभिनय में रूचि हुई। नूतन के प्रयोगधर्मी मानसिकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘दिल्ली का ठग’ में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर सभी को चौंकने के लिए मजबूर कर दिया था। फिल्म ‘बारिश’ में उन्होंने काफी बोल्ड दृश्य दिए तो विमल राय की फिल्म ‘सुजाता’ ए वं ‘बंदिनी’ में अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिनय कर लोगों को दांतों तले ऊंगली दबाने के लिए मजबूर कर दिया। दशकों तक लोगों के दिलों पर राज करने वाली पूतन 21 फरवरी 1991 को इस दुनिया से अलविदा कह गईं लेकिन लोग आज भी उनके दीवाने हैं।
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