4/16/2010

वक्त ने किया--क्या हंसी सितम...

आज जब कभी भूले-भटके एफएम पर जब भी ‘नाचती-झूमती मुस्कुराती आ गई प्यार की किरण’ या फिर ‘भीगे हैं तन फिर भी जलता है मन, जैसे के जल में लगी हो अगन, राम सबको बचाए इस उलझन से’ गीत बजते हैं, तब पैर अपने आप थिरक उठते हैं, हम खुद को गुनगुनाने से रोक नहीं पाते। मन भर जाता है। और तो और ‘वक्त ने किया क्या हंसी सितम, तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम, बेकरार दिल इस तरह मिले, जिस तरह कभी हम जुदा ना थे, तुम भी खो गये, हम भी खो गये, एक राह पे चल के दो कदम। वक्त ने किया...’ यह गाना तो हर जवां दिल के मन को टटोलता है और एक अलग ही दुनिया में खोने के लिए मजबूर करता है।
कमाल की गायिका गीता दत्त शास्त्रीय संगीत की मधुर लय पर जब गाती हैं ‘ना ये चांद होगा- ना तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे’ और ‘मेरा सुन्दर सपना बीत गया’, ‘मेरा नाम चिन-चन चूं’ सुनते-सुनते पता नहीं मन कहां खोने लगता है। फिल्म के पर्दे पर नायिका से लेकर सहनायिका तक और नर्तकी से लेकर बंजारिन तक हर किसी की जुबां से निकले उनके बोल सुनने वालों को मदमस्त करते हैं।गीता दत्त का असली नाम गीता घोष रायचौधरी था।
वहीदा रहमान के साथ गुरूदत्त का नाम जोड़ा जाने लगा था, जिससे गीता दत्त काफी आहत थीं। आखिर दोनों अलग हो गए, जिसने गुरूदत्त को तोड़ कर रख दिया। अकेलेपन की इंतहा ने उन्हें नशे के आगोश में जाने के लिए मजबूर कर दिया और ऐसा किया कि मौत की नींद में सोने के लिए विवश हो गये।
बंगलादेश के फरीदपुर से मुंबई आकर बसा था उनका परिवार। पहली बार 1946 में फिल्म ‘प्रह्लाद’ के जरिए पार्श्वगायिका के तौर पर आईं लेकिन 1947 में प्रदर्शित फिल्म ‘दो भाई’ उसके सिने करियर में अहम साबित हुई। उसका गाना ‘मेरा सुंदर सपना टूट गया’ आज भी लोग गुनगुनाते हैं। गीता दत्त ने अपने सिने करियर में करीब 17 सौ गाने गाये। 1940 से 1960 का दशक हिन्दी फिल्मों का स्वर्णयुग माना जाता है। यह वही दौर था, जब गीता दत्त ने एक से एक बेहतरीन गाने गाकर अपने नाम का परचम लहराया।
1951 में फिल्म ‘बाजी’ के निर्माण के दौरान गुरूदत्त से मुलाकात हुई। फिर ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले’ की रिकार्डिंग के दौरान दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए और 1953 में शादी कर ली। गीतकार के तौर पर एसडी वर्मन और आ॓पी नैयर के साथ गीता दत्त की जोड़ी काफी पसंद की गई। ऐसे ही दौर में उनकी जुबां से निकली ‘सुन सुन सुन जालिमा’, ‘बाबूजी धीरे चलना’, ‘ये लो मैं हारी पिया’ जैसे गाने के बोल। 1957 आते-आते गुरूदत्त और गीता की विवाहिता जिंदगी में दरार आ गयी। वहीदा रहमान के साथ गुरूदत्त का नाम जोड़ा जाने लगा था, जिससे गीता दत्त काफी आहत थीं। आखिर दोनों अलग हो गए, जिसने गुरूदत्त को तोड़ कर रख दिया। अकेलेपन की इंतहा ने उन्हें नशे के आगोश में जाने के लिए मजबूर कर दिया और ऐसा किया कि मौत की नींद में सोने के लिए विवश हो गये।
गुरूदत्त की मौत से गीता दत्त को भारी सदमा लगा और उसने भी खुद को नशे में डुबो लिया। परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी के कारण गीता अपने भाइयों के पास चली गई। लेकिन माली हालत खराब होने पर वापस मायावी दुनिया में आई और पहचान बनाने की कोशिश की। नशे की आदत उन्हें लग ही गई थी, सत्तर का दशक आते-आते उनकी तबियत खराब रहने लगी और फिर 20 जुलाई, 1972 को दुनिया का अलविदा कह दिया। उनके गानों में एक आ॓र जहां उमंग और उत्साह नजर आता है, वहीं गहरा दुख भी झलकता है। यही गीता दत्त की हकीकत थी। उनकी जिंदगी में दोनों तरह के तूफान आये और वह भंवर में डूबती चली गई और फिर उबर नहीं पाईं। बस एक कशिश छोड़ गईं।

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