सोशल मीडिया को जो दौर चल रहा है, उससे आने वाले वष्रो में पत्रकारिता में व्यापक परिवर्तन होने से शायद ही कोई रोक सके, क्योंकि सभी चीजें ’हमलोग‘ से ’उनलोग‘ में बदल रही है। आज के दौर में पाठक, उनकी सहभागिता और योगदान काफी हद तक बढ़ा है। सोशल नेटवर्किग साइट्स की ओर नजर दौड़ाएं तो किसी भी खबर के छपने से पहले उन पर बहस और फीडबैक भी आने लगते है और बातें काफी आगे निकल जाती है। इससे डिजिटल मीडिया और प्रिंट मीडिया के संबंधों को आसानी से समझा जा सकता है, क्योंकि सोशल मीडिया के जरिए जहां आम पाठक अपनी राय देने में आगे रहते है, वही प्रिंट मीडिया में काफी समय लगता है।
जब ’द गार्जियन‘ के एडिटर-इन-चीफ एलन रूसब््िराडजर कहते है कि वह दिन बीत चुका, जब कोई पत्रकार अंतरात्मा की आवाज के जरिए किसी खबर के तह तक पहुंचता था और अखबार की जबर्दस्त बिक्री होती थी। अब जितनी जानकारी कोई पत्रकार जुटाता है, तब तक सोशल मीडिया में वह मुद्दा उछल चुका होता है। फिर कुछ ही समय में वह बात नहीं रह जाती, क्योंकि कई लोग सोशल मीडिया के जरिए उससे जुड़े और भी मुद्दों को सामने लाते है तो कई उस पर अपनी राय देने से भी नहीं चूकते। ऐसे में, इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पिछले पांच बरसों में इंग्लैड में अखबारों की बिक्री में 25 फीसद की कमी आई है। सोशल मीडिया की ताकत को जानना हो तो ट्विटर और फेसबुक के आंकड़ों को देखें। जितने लोग इंटरनेट का यूज करते है, वे अपना एक चौथाई समय सोशल मीडिया पर ही खर्च करते है। ये लोगों को इसलिए भी आकषिर्त कर रहे है, क्योंकि इसमें ’कम्युनिकेशन‘ की असीम संभावनाएं है जो दोनों तरफ से होती है। चाहे पक्ष का हो या विपक्ष का, हर कोई अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र है। यहां संपादक की कोई भूमिका नहीं होती। पाठकों की सहभागिता, किसी मुद्दे पर बहस, प्रकाशित मामले और सुझाव के साथ-साथ विभिन्न विषयों पर व्यक्तिगत या सामूहिक आपत्ति मीडिया की तस्वीर बदलने के लिए आतुर है। यही कारण है कि वर्तमान में सोशल मीडिया के जरिए कोई सेलिब्रिटी जब अपनी बात लोगों के सामने रखता है तो वह खबर के रूप में टीवी चैनलों पर दिखती है या फिर दूसरे दिन अखबारों में पाठकों के सामने होता है। सोशल मीडिया के आने से खबरों में भूल सुधारने और पारदर्शिता में भी इजाफा हुआ है। हालांकि इंटरनेट के दौर में पश्चिम के कई अखबार अब ऑनलाइन संस्करणों को पेड मोड में बदल गये है, बावजूद इसके पाठकों में कोई कमी नहीं आई है। वर्तमान दौर में विशेषज्ञ इस बात से सहमत है कि अखबार और इसकी खबर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे, इसके लिए इन्हें मोबाइल फोन और आई पॉड जैसे डिवाइज की सहायता ली जानी चाहिए। इन डिवाइज, सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया या फिर न्यूज चैनलों को जोड़ दिया जाए तो फिर पत्रकारिता की नई तस्वीर और इसकी तकदीर का आकलन आसानी से किया जा सकता है। |
9/20/2010
सोशल मीडिया की खुमारी
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