बनारस के लालजी पांडेय यानी गीतकार अनजान बचपन से ही शेरो-शायरी के शौकीन थे। हिन्दी फिल्मों में उनका योगदान अतुलनीय है 'डान‘ का ’खइके पान बनारस वाला.,‘ या फिर ’मुकद्दर का सकिंदर‘ का ’रोते हुए आते है सब..‘ आज भी लोग इन गानों को सुनकर झूम उठते है। इन गीतों को लिखने वाले का नाम है अनजान! यह कोई अनजान नहीं बल्कि अनजान ही है जिनका असली नाम था लालजी पांडेय। 28 अक्टूबर 1930 को बनारस में जन्मे अनजान का बचपन से ही शेरो-शायरी के प्रति गहरा लगाव था। अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए वह बनारस में आयोजित लगभग सभी कवि सम्मेलनों और मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। हालांकिमुशायरांे में वह उर्दू का इस्तेमाल कम ही किया करते थे। जहां हिन्दी फिल्मों में उर्दू का इस्तेमाल पैशन था, वहीं अनजान अपने गीतों में हिन्दी पर ज्यादा जोर दिया करते थे। गीतकार के रूप में अनजान ने करियर की शुरुआत 1953 में अभिनेता प्रेमनाथ की फिल्म ’गोलकुंडा का कैदी‘ से की। इस फिल्म के लिए सबसे पहले उन्होंने ’लहर ये डोले कोयल बोले ..‘ और ’शहीदों अमर है तुम्हारी कहानी..‘ गीत लिखे लेकिन इस फिल्म से वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। उनका संघर्ष जारी रहा। इस बीच अनजान ने कई छोटे बजट की फिल्में भी की जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ। अचानक उनकी मुलाकात जी.एस. कोहली से हुई जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म ’लंबे हाथ‘ के लिए ’मत पूछ मेरा है मेरा कौन वतन..‘ गीत लिखा। इस गीत के जरिये वह काफी हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। लगभग दस वर्ष तक मुंबई में संघर्ष करने के बाद 1963 में पंडित रविशंकर के संगीत से सजी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान पर आधारित फिल्म ’गोदान‘ में ’चली आज गोरी पिया की नगरिया..‘ गीत की सफलता के बाद अनजान ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। अनजान को इसके बाद कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। इनमें ’बाहरे फिर भी आएंगी‘, ’बंधन‘, ’कब क्यों और कहां‘, ’उमंग‘, ’रिवाज‘, ’एक नारी एक ब्राह्मचारी‘ और ’हंगामा‘ जैसी फिल्मों के गीत लिखे। इस दौर में वह सफलता की नई बुलंदियों को छू रहे थे और एक से बढ़कर एक गीत लिखे। 1976 में उन्होंने कल्याणजी-आनंदजी के संगीत में ’दो अनजाने‘ का गीत ’लुक छिप लुक छिप जाओ ना..‘ लिखा, जो अमिताभ बच्चन के करियर के अहम फिल्मों में से एक है। 80 के दशक में उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती की फिल्मों के लिए भी गाने लिखे। आर.डी. बर्मन के लिए उन्होंने ’ये फासले ये दूरियां..‘, ’यशोदा का नंदलाला..‘ जैसी कालजयी गीत लिखे। लेकिन 90 के दशक में वे अस्वस्थ रहने लगे, बावजूद इसके उन्होंने ’जिंदगी एक जुआ‘, ’दलाल‘, ’घायल‘ के अलावा ’आज का अजरुन‘ के लिए ’गोरी है कलाइयां..‘ लिखा। उन्होंने अपनी जिंदगी का आखिरी गाना ’शोला और शबनम‘ फिल्म के लिए लिखा। ऐसा नहीं कि उन्होंने सिर्फ फिल्मों के लिए ही गाने लिखे। 60 के दशक में उन्होंने गैर फिल्मी गीत भी लिखे जिसे मोहम्मद रफी, मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर ने गाये। अनजान 20 वष्रांे तक हिन्दी फिल्मों की दुनिया में छाए रहे। उनके गानों में भोजपुरी के अलावा बनारस की खुशबू रहती थी। 13 सितम्बर, 1997 को वह दुनिया से अलविदा कह गए लेकिन इसके कुछ ही महीने पहले उनकी कविता की किताब ’गंगा तट का बंजारा‘ का लोकार्पण अमिताभ बच्चन ने किया था। विनीत उत्पल ’डॉ 60 के दशक में उन्होंने गैर फिल्मी गीत भी लिखे जिन्हें मोहम्मद रफी, मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर ने गाया। अनजान 20 वष्रांे तक हिन्दी फिल्मों की दुनिया में छाए रहे। उनके गानों में भोजपुरी के अलावा बनारस की खुशबू थी. |
10/20/2010
लहर ये डोले कोयल बोले.. अनजान
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1 comment:
बहुत अच्छी जानकारी!
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