8/17/2011

कोसीनामा-6: विकास के नाम पर सांसद में पप्पू

कोशीनामा के इस अंक से हम कोशी के इलाके के तमाम सांसदों के संसद में कामकाज का जायजा लेंगे कि उन्होंने संसद में कब, क्या और किस विषय पर चर्चा की। आम लोगों को यह पता ही नहीं लगता कि उनके क्षेत्र के सांसद संसद में क्या करते हैं। कभी बहसों में भाग लेते हैं या नहीं। और फिर जब चुनाव का वक्त आता है तो जाति, धर्म, पार्टी के नाम पर वोट देने के लिए मजबूर होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि अपने सांसदों के चाल, चरित्र और चेहरे को जानें और तमाम राजनीतिक उठापटक के बीच क्षेत्र के विकास को लेकर किस तरह आवाज बुलंद कर रहे हैं, यह जानने का हक हर आम जनता को है। 
इस बार पूर्णिया के तत्कालीन सांसद पप्पू यादव:-
लोकसभा में 12 दिसम्बर, 2003 को 'राज्य में विकास कार्यों के लिए बिहार को आर्थिक पैकेज तथा इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम" विषय पर चर्चा हुई थी। हालांकि चर्चा की शुरुआत को रघुवंश प्रसाद ने की थी लेकिन पूर्णिया के तत्कालीन सांसद पप्पू यादव ने संसद के पटल पर जो बातें रखीं, वह न सिर्फ कोसी क्षेत्र के लिए बल्कि बिहार के विकास के नाम पर मायने रखती है। उन्होंने सीधे तौर पर कहा था, 'बिहार का दुर्भाग्य है कि उसका किस परिस्थिति में बंटवारा हुआ और बिहार बंटने के बाद, आज वह जिस मुकाम पर खड़ा है, अगर उस परिस्थिति में जाएंगे, तो हम यही पाएंगे कि बिहार बांटने वाले लोग सदन में भी हैं, सदन के बाहर भी बैठे हैं और सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ के लिए बिहार बंट गया। बिहार बंटने के बाद 8.5 करोड़ गरीब लोगों की हालत पर, उनकी परिस्थिति पर, कभी भी बिहार में रहने वालों और बिहार से बाहर रहने वाले बिहार के लोगों ने चिन्ता नहीं की।"
हालांकि पप्पू यादव को लंच के पहले भाषण देना था लेकिन इसके लिए सिर्फ दो मिनट का समय उन्हें मिलता। इस कारण तत्कालीन अध्यक्ष ने उन्हें लंच के बाद अपनी बात रखने का आग्रह किया। इस मामले में रघुनाथ झा और देवेंद्र प्रसाद यादव ने भी भाग लिया था। लंच के बाद जब पप्पू यादव ने बोलना शुरू किया तो उन्होंने साफ कहा था कि जब बिहार बंट रहा था, तो केंद्र सरकार और दिल्ली में बैठे लोगों ने बिहार को विशेष पैकेज देने की घोषणा की जिसे बिहार के बंटने से पहले घोषित किया जाना था, लेकिन वह घोषणा बिहार बंटने से न पहले की गई और न बिहार बंटने के बाद। कभी बिहार में 5334 फैक्ट्रीज थीं। यदि हम शुरू से चलें, डालिमयां नगर से, गया से, भागलपुर आ जाएं, सीवान चले जाएं, छपरा चले जाएं, दरभंगा चले जाएं, पेपर मिल, गोपाल गंज सिल्क मिल, दालचीनी मिल, सारी की सारी फैक्ट्रियां बन्द हो गर्इं। बिहार सरकार में जो को-आपरेटिव संस्थाएं हैं और जिनके अन्तर्गत 14 और 19 छोटी और बड़ी चीनी मिलें हैं, वे सारी की सारी बन्द हो गई हैं।
पप्पू यादव का भाषण कई मायनों में अहम है। उन्होंने कहा कि कई राज्यों को केंद्र सरकार की ओर से विशेष छूट दी जाती है, लेकिन बिहार विशेष छूट वाले राज्यों में नहीं आता है जबकि देश की आधे से अधिक आबादी यानी 62.2 प्रतिशत निरक्षर हैं। जहां देश का शहरीकरण 27 प्रतिशत है वहीं बिहार का शहरीकरण केवल 10 प्रतिशत है और केवल  37 प्रतिशत लोग ही साक्षर हैं। यदि देश के शत-प्रतिशत साक्षर वाले राज्य केरल को छोड़ दें, तो देश की आधी आबादी के बराबर आठ हजार पांच सौ करोड़ रु पए की फसल, हर वर्ष जनसंख्या की आबादी के तीन हिस्से के बराबर, बाढ़ से बर्बाद हो जाती है और आज तक आजादी के बाद देश में इस बारे में कोई चिन्ता व्यक्त नहीं की गई। लेकिन नेपाल और हिमालय से निकलने वाली नदियों से बिहार में आने वाली बाढ़ को रोकने के लिए कोई वृहद् योजना न आज तक बनाई गई और न इस पर चर्चा की गई है। कोसी, कमला, महानंदा, गंडक, पुनपुन और गंगा आदि कई ऐसी नदियां हैं, जो बड़ी नदियां हैं लेकिन इनकी बाढ़ से बचाव के लिए कोई चिन्ता नहीं की गई।
पप्यू यादव ने देश के लोगों का ध्यान इस ओर भी आकृष्ट किया था कि उत्तर बिहार में 18-19 और जिले हैं, मध्य बिहार के जिले हैं, दक्षिण बिहार के जिले हैं, वे पूरी तरह से सूखा में हैं। हम सात महीने बाढ़ में रहते हैं और पांच महीने सूखा में रहते हैं।
पप्पू यादव ने कहा था कि देश की 25 प्रतिशत चीनी का बिहार में उत्पादन होता है। किशनगंज में कम से कम सौ ऐसे चाय के बागान हैं, जहां यदि आप चाय की बागानों के लिए किसी फैक्ट्री की व्यवस्था करते हैं, कोई ऐसी व्यवस्था करते हैं तो किशनगंज का इलाका अपने पर आत्मनिर्भर होगा। संसद में संबंधित मंत्री से उन्होंने जानना चाहा था कि कटिहार की जूट मिल, बनमनखी और मधुबनी की चीनी मिल या इस तरह की जितनी चीनी मिले हैं, सहरसा और दरभंगा की पेपर मिल, इनके लिए क्या योजना बनाई गई है। 
उन्होंने जानना चाहा था कि भारत सरकार ने कम पैसे नहीं दिए - चाहे आरएफ में हों या प्रधानमंत्री सड़क योजना हो। वहां से भारत सरकार का पैसा लौट जाता है और आज प्रधानमंत्री सड़क योजना का तीन-चार बार दूसरे राज्यों में पैसा गया, लेकिन बिहार में आप एक बार भी पूरा पैसा नहीं भेज सके, इसका क्या कारण है इस तरह का व्यवहार क्यों किया जाता है, आपने अभी तक उन्हें पूरा पैसा क्यों नहीं भेजाआपने अन्य राज्यों में दो-तीन-चार बार पैसा भेजा और बिहार में एक बार भी नहीं भेजा। उन्होंने मांग की थी कि यदि बिहार को सुद्ृढ़ करना चाहते हैं तो उन्हें विशेष छूट दीजिए। बरौनी और मुजफ्फरपुर का जो विद्युत थर्मल पावर है उसे नयी तकनीकी में और डेवलप करके वृहद करिए। यदि इससे भी ज्यादा उसे सुंदर करना चाहते हैं तो जो किसान का बिहार में ऋण है, जब देवेगौड़ा जी प्रधानमंत्री बने तो विशेष पैकेज कर्नाटक को मिला और गुजरालजी बने तो पंजाब को मिला। जो पंजाब देश में सबसे ऊपर है। वहां तीन नदियां हैं और वह सबसे ऊपर है। हम सौ नदियों वाले सबसे नीचे हैं, 32वें स्थान पर हैं। 
उन्होंने कहा था कि गुजराल साहब बिहार से बने, लेकिन पैकेज पंजाब को मिला। देवेगौड़ा जी को किंग मेकर बनाने वाले बिहार वाले हैं और पैकेज कर्नाटक को मिल गया। बिहार सरकार कहती है कि बिहार में कुछ नहीं है तो मेरा कहना है कि बिहार की सरकार को बिहार छोड़ कर केंद्र के सुपुर्द कर देना चाहिए। मेरा बिहार के विशेष पैकेज से मतलब है, बिहार जिस परिस्थिति और हालात में दूसरे से 32वें स्थान पर चला गया है, उसे उस हालात में लाने के लिए अगर राज्य सरकार कुछ नहीं करती तो मेरा केन्द्र से आग्रह है कि आप विशेष पैकेज के रूप में सारी फैक्ट्रियों को ले लीजिए। पप्पू यादव ने मांग की थी कि कृषि पर आधारित जो लघु, कुटीर उद्योग हैं, बिग और स्माल इंडिस्ट्रीज हैं, उनका मूल्यांकन की जाए। मूल्यांकन करने के बाद बिहार में कैसे रोजगार डवलप हो, कैसे वहां के मजदूर बाहर न जायें और बाहर जाने की जहां तक बात है, छात्र बाहर नहीं जायें, इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। संयोगवश इस वक्त के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस वक्त केंद्र में रेल मंत्री थी। पप्पू यादव ने उन्हें इंगित करते हु, कहा था कि यहां बिहार के नीतीश जी बैठे हैं, ये रेल मंत्रालय में है, दूसरे लोग भी हैं, सभी लोग हैं, आपने एक भाग में बहुत काम किया, लेकिन उसकी और जो परिस्थितियां हैं, रोजगार की जो परिस्थितियां हैं, वहां से विद्यार्थी, बिहार के नौजवान बाहर जा रहे हैं। उनके लिए रोजगार कैसे पैदा हो, सबसे ज्यादा केन्द्र को वहां रोजगार पैदा करने के लिए कोई नई ताकत, कोई नई फैक्टरी, बन्द पड़ी फैक्टरी का काम करना चाहिए। 

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