11/05/2023

ओटीटी सीरीज का हथकंडा, कहीं हकीकत, कहीं एजेंडा


 ओटीटी सीरीज का हथकंडा, कहीं हकीकत, कहीं एजेंडा 

विनीत उत्पल 


लेखक अनंत विजय की पुस्तक ‘ओवर द टॉप का मायाजाल’ उस सत्यता को परिभाषित करती है, जो ओटीटी के विभिन्न प्लेटफार्म पर वेब सीरीज के खिस्सों के जरिये दर्शकों को दिखाया जाता है. देश में इंटरनेट का बढ़ता घनत्व और डाटा सस्ता होने के कारण ओटीटी प्लेटफॉर्म की व्याप्ति बढ़ी है और इन प्लेटफॉर्म पर दिखाई जाने वाली सामग्री में गलियों की भरमार, यौनिकता और नग्नता का प्रदर्शन, जबरदस्त हिंसा और खूंन-खराबा, अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां और कई बार सैनिकों की छवि ख़राब करने जैसे प्रसंग भी सामने आ चुके हैं. ऐसे में नौ अध्यायों ‘नग्नता और यौनिकता का बोलबाला’, ‘पाताल लोक में पक्षपात का समुच्चय’, ‘रंगबाज, महारानी और पुरबिया नाच’, ‘परदे पर काल्पनिक नैरेटिव’, ‘कहानियों के बदलते कलेवर’, ‘प्रमाण के बंधनों से मुक्ति या’, ‘वेब सीरीज: मंथन का समय’, ‘ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की चुनौतियाँ’, ‘मनोरंजन से वैश्विक होती हिंदी’ के जरिये अनंत विजय ने ओटीटी से जुड़े विभिन्न आयामों की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में दी है.

अनंत विजय पुस्तक की भूमिका में कहते हैं कि ओटीटी प्लेटफार्म भारत में मनोरंजन का अपेक्षकृत नया माध्यम है और कोरोना महामारी के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन ने इस माध्यम को लोकप्रिय बनाया। उनका मानना है कि यहाँ दिखाए जाने वाले अधिकतर कंटेंट में एक प्रकार की अराजकता दिखाई पड़ती है. यही कारण है कि विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शित शिकायतों का आंकड़ा 6-7 हजार से अधिक है. वे लिखते हैं कि फरवरी, 2001 में सूचना प्रौद्योगिकी कानून लाया गया और इसके तहत ओटीटी की सामग्री पर नजर रखने का प्रावधान है और इसके लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था है, पहला, पब्लिशर के स्तर पर, दूसरा, स्वनियमन और तीसरा, सरकार के स्तर पर. इस पुस्तक में वे नेटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो, हॉटस्टार के द्वारा कंटेंट और ग्राहकीय रणनीतियों पर भी व्यापक रूप से प्रकाश डाला है. वे लिखते हैं, ‘नेटफ्लिक्स ने दिसंबर 2021 में ग्राहकों को काम मूल्य पर अपनी सेवाएं उपलब्ध करवाना आरम्भ किया। नेटफ्लिक्स ने दो तरह की रणनीति अपनाई थी-एक तो ग्राहकों को जो शुल्क देना पड़ता थी, उसको कम किया और अपने प्लेटफार्म पर भारतीय फिल्मों एवं भारतीय कहानियों पर बनी वेब सीरीजों को प्राथमिकता देना आरम्भ किया… प्राइम वीडियो, हॉटस्टार आदि ने भी भारतीय कहानियों को केंद्र में रखकर कहानियां पेश करनी शुरू कर दी.’

पुस्तक के पहले अध्याय ‘नग्नता और यौनिकता का बोलबाला’ में लेखक ने ‘लस्ट स्टोरीज’, ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘घोउल’, ‘मिर्जापुर’ जैसे वेब सीरीज की स्क्रिप्ट का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि ज्यादातर सीरीज अपराध कथाओं पर आधारित होती हैं, लिहाजा अपराध, सेक्स प्रसंग, गाली-गलौज, जबरदस्त हिंसा आदि दिखाने की छूट निर्देशक ले लेते हैं. ऐसे में वेब सीरीज में परोसी जाने वाले नग्नता और हिंसा को लेकर निर्माताओं को स्वनियमन के बारे में सोचना चाहिए. 

दूसरे अध्याय ‘पाताल लोक में पक्षपात का समुच्चय’ में ‘पाताल लोक’, ‘लैला’, ‘जामताड़ा’. ‘रसभरी’, ‘आर्या’, ‘पंचायत’ जैसे सीरीज के विषयों को लेकर अनंत विजय कहते हैं कि कला की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के नाम पर समाज को बाँटने की छूट ने तो लेनी चाहिए और न ही दी जानी चाहिए. यथार्थ के नाम पर कहानी के लोकेशन और गालीवाली भाषा को पेश करने की जो भेड़चाल वेब सीरीज में दिखाई देती है उस पर भी विचार करना होगा. यथार्थ के चित्रण के लिए जिस कौशल की जरूरत होती है, वह गले-गलौच और अश्लीलता दिखनेवाले निर्देशकों में नहीं दिखता। इस तरह के लोग अपनी कमजोरियों को ढकने के लिए गालियों, हिंसा और यौनिक दृश्यों का सहारा लेते हैं. यही कारण है कि फिल्म या वेब सीरीज के क्राफ्ट या निर्देशकों के कौशल पर बात नहीं होती है और साड़ी चर्चा गलियों और फूहड़ता पर केंद्रित हो जाती है. 

अनंत विजय इस मामले में तर्क देते हुए लिखते हैं, ‘समांतर सिनेमा के दौर में भी यथार्थ दिखाया जाता था, चाहे वे गोविंद निहलानी की फ़िल्में हों या श्याम बेनेगल की या महेश भट्ट की. इनकी फिल्मों में भी यथार्थ होता था, वैसा यथार्थ जो बगैर लाउड हुए जीवन को दर्शकों के सामने पेश करता था.’ लेखक लिखते हैं कि ‘पाताल लोक’ पत्रकार तरुण तेजपाल के उपन्यास ‘द स्टोरी ऑफ़ माई एसेसिंग’ पर बनाई गई प्रतीत होती है वहीं, ‘रसभरी’ में असंवेदनशीलता में एक छोटी बची को पुरुषों के सामने उत्तेजक नाच करते हुए, एक वस्तु की तरह दिखाना निंदनीय है. वेब सीरीज के विषयों को लेकर वे चिंतित दिखाई पड़ते हैं और कहते हैं ‘वेब सीरीज कई अराजकता का दायरा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. जो पुस्तकें दशकों पहले फुटपाथ पर पीली पन्नियों में छिपाकर बेची जाती थीं, अब उसी स्तर की कहानियां और उस पर बनी फ़िल्में इन प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज के रूप में उपलब्ध होने लगी हैं.’

तीसरे अध्याय ‘रंगबाज, महारानी और पूरबिया नाच’ में ‘रंगबाज’, ‘महारानी’ ‘रामयुग’ जैसे वेब सीरीज का विश्लेषण किया गया है और बताया गया है कि जी-5 पर प्रदर्शित ‘रंगबाज’ में उत्तर प्रदेश के खतरनाक अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ल के कारनामे को दिखाया गया है जबकि दूसरे सीजन में राजस्थान के गैंगस्टर आनदपाल सिंह के अपराध की कहानी चित्रित की गई थी. गौरतलब है कि आईपीएस राजेश पांडे और वरिष्ठ पत्रकार और प्रोफ़ेसर राकेश गोस्वामी की हाल में आई पुस्तक ‘ऑपरेशन बजूका’ श्रीप्रकाश शुक्ल की अपराध गाथा है जो काफी चर्चित रही है, ‘महारानी’ वेब सीरीज बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव जब घोटाले के भंवर में फंसे तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था. उस घटना पर केंद्रित यह वेब सीरीज थी. वहीं लेखक ‘रामयुग’ को लेकर कहते हैं कि इस सीरीज में भले ही राम को आधुनिक रूप में दिखने की कोशिश की गई हो, लेकिन उनके मर्यादा पुरुषोत्तम के चरित्र को उसी तरह से पेश किया गया है, जैसा कि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ में या तुलसीदास ने ‘श्रीरामचरितमानस’ में किया है. 

अनंत विजय अध्याय चार ‘परदे पर काल्पनिक नैरेटिव’ में ‘लैला’, ‘द फैमिली मैन’, ‘तांडव’ के विषयों को लेकर कहते हैं कि पाबंदी या बंदिश या पाबंदी के कानून आदि की अनुपस्थिति में स्थितयां अराजक हो जाती हैं. उन दिनों जिस तरह की वेब सीरीज आ रही थी, उनमें कई बार कलात्मक आजादी या रचनात्मक स्वतंत्रता की आड़ में सामाजिक मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को मिटाकर नई रेखा खींचने की कोशिश भी दिखाई देती है. ‘द फैमिली मैन’ में आतंकवाद को जस्टिफाई करने की कोशिश दिखाई देती है. वहीं, ‘तांडव’ को लेकर वे कहते हैं कि इसकी ऐसी कहानी है, जिसमें न तो निरंतरता है और न ही रोचकता। कहानी के लेखक को भारतीय समझ तक नहीं है. इसकी कहानी में सिर्फ एजेंडा भरा गया था और अख़बारों से उठाकर घटनाओं का भोंडा कोलाज बनाने का प्रयास किया गया था. 

अध्याय पांच में ‘कहानियों के बदलते कलेवर’ के जरिये लेखक ने ‘बिच्छू का खेल’, ‘स्कैम 1992’ सहित विभिन्न वेब सीरीज के जरिये लेखक का मानना है कि उनमें भारतीय कहानियों की मांग बढ़ी है. वह चाहे ‘आर्या  हो, ‘पाताललोक’ हो, ‘आश्रम’ हो, ‘बंदिश बैंडिट्स’ हो, ‘पंचायत’ हो, इन सबमें हमारे आसपास की कहानियां हैं. न सिर्फ कहानियों में, बल्कि इन सीरीज की भाषा और मुहावरों में भी देसी बोली के शब्दों को जगह मिलने लगी है. वहीं, ‘जुबली’ नामक वेब सीरीज की कहानी बताती है कि कैसे कम्युनिस्टों ने हिंदी फिल्मों में अपना एजेंडा सेट किया और विचार संग विचारधारा का प्रोपेगंडा कैसे सेट किया। 

अध्ययन छह ‘प्रमाणन के बंधनों से मुक्ति या..’ में ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल’ के जरिये हुए विवाद और रक्षा मंत्रालय द्वारा 2023 में जारी निर्देशों की चर्चा की गई है. लेखक नेटफ्लिक्स पार आई एक फिल्म ‘गिल्टी’ का विश्लेषण करते हुए लिखते हुए कहते हैं, ‘इस फिल्म की कहानी मी टू के इर्द-गिर्द घूमती है. कॉलेज के छात्रों के बीच एक छात्र का रेप होता है और फिर सोशल मीडिया और मीडिया पर उठे बवंडर के मध्य कहानी चलती है.’ वे लिखते हैं कि निर्देशक शूजित सरकार की फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ को ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज किया गया था, जो भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन के इतिहास में एक अहम् मोड़ पर देखा गया. इसके बाद फिल्मों के रिलीज होने का ट्रेंड बदल गया. सलमान खान की फिल्म ‘राधे, ओर मोस्ट वांटेड भाई’ को जी-5 पर रिलीज किया गया था और रिलीज के साथ इतने दर्शक पहुंचे कि वह प्लेटफार्म थोड़ी देर तक दर्शकों का बोझ ही नहीं उठा सका और हैंग हो गया था. 

‘वेब सीरीज: मंथन का समय’ नामक सातवें अध्याय में ओटीटी को लेकर भारत सहित दूसरे देशों के मौजूदा कानूनों की व्याख्या की गई है. भारत सरकार ने दिशा-निर्देश में कहा था कि कलात्मक स्वतंत्रता की आड़ में कोई भी ऐसी सामग्री दिखाने की अनुमति नहीं होगी, जो कानून सम्मत नहीं है, लेकिन सरकार ने दिशा-निर्देश जारी करते हुए सेवा प्रदाताओं को इसका तंत्र विकसित करने को कहा था. लेखक लिखते हैं कि कई देशों में ओटीटी के लाइट स्पष्ट दिशा-निर्देश है, सिंगापुर में बाकायदा इसके लिए एक प्राधिकरण है वहीं ऑस्ट्रेलिया में इस तरह के प्लेटफॉर्म पर नजर रखने के लिए ई-सेफ्टी कमिश्नर है. 

आठवें अध्याय ‘ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के चुनौतियाँ’ नामक अध्याय में कंटेंट के बदलाव, गुणवत्ता, पाइरेसी आदि की चर्चा की गई है, वहीं नौंवे अध्याय ‘मनोरंजन से वैश्विक होती हिंदी’ में फिजी के नाँदी में विश्व हिंदी सम्मलेन के आयोजन में हुई हिंदी फिल्मों की चर्चा की गई है. पुस्तक के आख़िरी में परिशिष्ट के माध्यम से विभिन्न देशों के नियमन को भी शामिल किया गया है. 

बहरहाल, अनंत विजय की पुस्तक ‘ओवर द टॉप का मायाजाल’ ओटीटी और इस पर दिखाई जाने वाली वेब सीरीज की कहानियों पर विचार-विमर्श का नया रास्ता खोलती है. भारतीय परंपरा और कहानियों पर वेब सीरीज बनाने के रास्ता प्रशस्त करती है और भारतीय सामाजिक स्थिति में कानून बनाने और वैश्विक कानूनों पर सोचने के लिए यह पुस्तक मजबूर करती है.   


पुस्तक: ओवर द टॉप का मायाजाल 

लेखक: अनंत विजय

पृष्ठ: 214 

मूल्य: 300 रुपये 

प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली 


समीक्षक विनीत उत्पल भारतीय जन संचार संस्थान, जम्मू परिसर में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और डिजिटल मीडिया कोर्स के समन्यवक हैं.